गरुड़ पुराणः कुछ इस तरह से करनी चाहिए अपने शरीर की देखरेख

Wednesday, Jun 05, 2019 - 10:58 AM (IST)

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गरुड़ पुराण में केवल मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में ही विस्तार ने नहीं बताया गया है बल्कि मनुष्य को अपना जीवन किस तरह जीना चाहिए, इस बारे में भी बहुत कुछ बताया गया है। अपने जीवन में हर व्यक्ति सुदंर दिखना चाहता है और उसके लिए वह बहुत मेहनत भी करता है, ताकि वह बेहतर दिख सके। जबकि गरुड़ पुराण में शरीर की देखभाल करने के बारे में कहा तो गया लेकिन किसी ओर कारण से , तो चलिए जानते हैं उन कारणों के बारे में। 

गरुड़ पुराण के अनुसार हमें अपने शरीर की देखभाल करनी चाहिए ताकि हम स्वस्थ रहने के साथ ही धर्म के मार्ग पर भी चल सकें। क्योंकि बीमारी में कभी भी व्यक्ति भक्ति नहीं कर सकता है। शरीर बीमार होने पर मन भी खुश नहीं रह पाता और दुखी और व्यधित मन कभी भी धर्म के कार्यों में लीन नहीं होने देता। इसलिए जरूरी है कि हम अपने शरीर के देखभाल करें और स्वस्थ रहें।

गरुड़ पुराण में कहा गया है कि वृद्धावस्था बाघिन के समान है और आयु एक फूटे हुए घड़े की तरह। जिस प्रकार फूटे हुए घड़े से लगातार बहता हुआ पानी अंत में खत्म हो जाता है और खोखला घड़ा रह जाता है। ठीक इसी प्रकार वक्त बीतने के साथ आयु भी घटती रहती है और अंत में मात्र देह बचती है। तो अगर हम युवावस्था में अपने शरीर की देखभाल करते हैं तो वृद्धावस्था के शत्रुओं से आसानी से लड़ पाते हैं। जीवन की इस अंतिम अवस्था के सबसे बड़े शत्रु होते हैं रोग और बीमारियां। इस समय पर युवावस्था के दौरान शरीर को दी गई मजबूती बहुत काम आती है। इसलिए खान-पान और दिनचर्या संतुलित रखनी चाहिए। ताकि हम स्वास्थ्य रह सके। 

हमारे समाज में एक आम धारणा है कि पूजा-पाठ के काम तो बुढ़ापे में करने होते हैं। जबकि यह सही नहीं है। हम युवावस्था में इस सोच के कारण धर्म और पुण्य नहीं करेंगे तथा बुढ़ापे में बीमारियां हमें यह सब नहीं करने देंगी तो हमारे पास तो पुण्य संचित ही नहीं हो पाएगा। इसलिए जरूरी है कि धार्मिक कार्य करने और पुण्य कमाने के लिए वृद्धावस्था का इंतजार न करें। 

Lata

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