Ganesh Atharvashirsha:  एक बार इस विधि से करें गणेश अथर्वशीर्ष पाठ, मन की हर मुराद होगी पूरी

Wednesday, Apr 24, 2024 - 08:07 AM (IST)

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Ganesh Atharvashirsha: सनातन धर्म में गणेश जी को प्रथम पूजनीय देवता माना जाता है। किसी भी शुभ या मांगलिक कार्य को शुरू करने से पहले गणेश जी को मनाने से सारे काम पूरे होते हैं। बुधवार के दिन गणपति का पूजन, स्तोत्र, पाठ और मंत्रोच्चारण करने से व्यक्ति का कल्याण होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, गणेश जी को गणेश अथर्वशीर्ष वैदिक प्रार्थना भी समर्पित है। यह पाठ करने से व्यक्ति को मानसिक शांति मिलती है और आर्थिक संकटों से भी छुटकारा मिलता है। आइए जानते हैं कि किसे और कैसे करना चाहिए गणेश अथर्वशीर्ष पाठ ?


These people must do Ganesh Atharvashirsha Path यह लोग जरूर करें गणेश अथर्वशीर्ष पाठ
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जिन लोगों की कुंडली में राहु, केतु और शनि का अशुभ प्रभाव पड़ रहा हो उन लोगों को बुधवार के दिन गणेश अथर्वशीर्ष पाठ जरूर करना चाहिए। इसे करने से व्यक्ति के जीवन से कष्टों का नाश होता है।

इसके लिए जिन बच्चों या युवाओं का पढ़ाई में मन नहीं लगता या फिर अपने करियर को लेकर कोई फैसला नहीं ले पा रहे तो वो नियमित रूप से गणेश अथर्वशीर्ष पाठ करें। ऐसा करने से पढ़ाई में मन लगेगा और एकाग्रता बढ़ेगी।


Recite Ganesh Atharvashirsha with this method इस विधि से करें गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ
गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करने के लिए रोज सुबह स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण कर लें।
पूजा घर में कुशा बिछाकर बैठ जाएं और शांत मन से गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें।
गणेश जी के खास दिन जैसे बुधवार और संकष्टी चतुर्थी के दिन इसका 21 बार पाठ करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।


Ganapati Atharvashirsha in Hindi अथ श्री गणपति अथर्वशीर्ष स्तुति
ॐ नमस्ते गणपतये।
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि।।
त्वमेव केवलं कर्त्ताऽसि।
त्वमेव केवलं धर्तासि।।
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि।
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि।।
त्वं साक्षादत्मासि नित्यम्।
ऋतं वच्मि।। सत्यं वच्मि।।
अव त्वं मां।। अव वक्तारं।।
अव श्रोतारं। अवदातारं।।
अव धातारम अवानूचानमवशिष्यं।।
अव पश्चातात्।। अवं पुरस्तात्।।
अवोत्तरातात्।। अव दक्षिणात्तात्।।
अव चोर्ध्वात्तात।। अवाधरात्तात।।
सर्वतो मां पाहिपाहि समंतात्।।
त्वं वाङग्मयचस्त्वं चिन्मय।
त्वं वाङग्मयचस्त्वं ब्रह्ममय:।।
त्वं सच्चिदानंदा द्वितियोऽसि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।।
सर्व जगदि‍दं त्वत्तो जायते।
सर्व जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्व जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।।
सर्व जगदिदं त्वयि प्रत्येति।।
त्वं भूमिरापोनलोऽनिलो नभ:।।
त्वं चत्वारिवाक्पदानी।।
त्वं गुणयत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:।
त्वं देहत्रयातीत: त्वं कालत्रयातीत:।
त्वं मूलाधार स्थितोऽसि नित्यं।
त्वं शक्ति त्रयात्मक:।।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यम्।
त्वं शक्तित्रयात्मक:।।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं।
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वं इन्द्रस्त्वं अग्निस्त्वं।
वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुव: स्वरोम्।।
गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं।।
अनुस्वार: परतर:।। अर्धेन्दुलसितं।।
तारेण ऋद्धं।। एतत्तव मनुस्वरूपं।।
गकार: पूर्व रूपं अकारो मध्यरूपं।
अनुस्वारश्चान्त्य रूपं।। बिन्दुरूत्तर रूपं।।
नाद: संधानं।। संहिता संधि: सैषा गणेश विद्या।।
गणक ऋषि: निचृद्रायत्रीछंद:।। ग‍णपति देवता।।
ॐ गं गणपतये नम:।।

Niyati Bhandari

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