बिहार के इस में मंदिर में होते हैं ऐसे चमत्कार, देखने-सुनने वाले रह जाते हैं हक्के-बक्के

Thursday, Sep 24, 2020 - 01:32 PM (IST)

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भारत देश का शायद ही कोई ऐसा कोना होगा जहां कोई मंदिर या अन्य कोई धार्मिक स्थल न हो। यहां रहने वाले लोग किसी एक धर्म के नहीं बल्कि अनेक संप्रदाय के लोग रहते हैं। यही कारण हैं देश में मंदिर, मस्जिद आदि की गिनती अधिक है। इन्हीं में से एक मंदिर के बारे में आज हम आपको बताने वाले हैं, जो बिहार के सुपौल जिले के गणपतगंज नामक क्षेत्र में स्थित है। बता दें विष्णु भगवान को समर्पित ये मंदिर अपनी भव्यता के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। बल्कि कहा जाता है कि बिहार में स्थित इस मंदिर की तुलना चेन्नई के प्रसिद्ध विष्णु मंदिर से की जाती है। तो वहीं मंदिर के प्रसिद्धि के कुछ कारण इससे जुड़े कई रहस्यों से जुड़े होंगे। को चलिए जानते हैं कि मंदिर से जुड़ी खास बातें- 

बता दें इस मंदिर कोगणपतगंज विष्णु मंदिर के नाम से जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस मंदिर का निर्माण करोड़ों की लागत से गणपतगंज निवासी जय नारायण मल्लिक के सुपुत्र डॉक्टर पीके मल्लिक के द्वारा किया गया है, जो सन् 2009 से शुरू हुआ था। बताया जाता है इस विष्णु धाम को वरदराज पेरुमल देवस्थान के नाम से भी जाना जाता है। बताया जाता है यहां पूजा करने वाले पुजारी कोई आम पुजारी नहीं बल्कि चेन्नई के प्रसिद्ध विष्णु मंदिरों में पूजा करने वाले शिक्षित पुजारी हैं। इन्हीं के द्वारा मंदिर में पूरे विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की जाती है। बता दें कि ये भव्य मंदिर इस क्षेत्र में पर्यटन और आस्था का प्रमुख केंद्र है। विष्णु भगवान के साथ-साथ मंदिर में अन्य देव-देवताओं की भी मूर्तिया स्थापित है जिनकी पूजा वैष्णव आचार्य करते हैं।

चलिए अब आपको लेकर चलते हैं बिहार के दूसरे प्रसिद्ध विष्णु मंदिर। इस मंदिर में स्थापित भगवान विष्णु को एक बार जिसने भी देखा वो उसमें ही रम जाता है। एकटकी लगाए बस प्रतिमा को देखता ही रहता है। बिहार के शेखपुरा जिले में बरबीघा-नवादा रोड पर स्थित ये ख़ास विष्णु धाम। मंदिर में भगवान विष्णु धाम की 7.5 फीट ऊंची व 3.5 फीट मूर्ति स्थापित है। विष्णु धाम भगवान की यह मूर्ति स्वरूप में है और चार हाथों में शंख, चक्र, गदा तथा पद्मम स्थित है। ये दुर्लभ मूर्ति जुलाई 1992 में तालाब में खुदाई के दौरान मिली थी।

मूर्ति की वेदी पर प्राचीन देवनागरी में अभिलेख ‘ऊं उत्कीर्ण सूत्रधारसितदेव:’ उत्कीर्ण है। इस लिपि में आकार, इकार और ईकार की मात्रा विकसित हो गई है.. ब्राह्मी लिपि में छोटी खड़ी लकीर के स्थान पर यह पूरी लकीर बन गई है। विशेषज्ञ मानते हैं कि इस प्रकार की लिपि उत्तर भारत में नौवीं सदी के बाद मिलती है। आपको बता दें कि प्रतिहार राजा महेंद्रपाल दिघवा-दुली दानपात्र में इस शैली की लिपि का प्रयोग पुराने समय में किया जाता था। इस अभिलेख में मूर्तिकार ‘सितदेव’ का नाम भी लिखा हुआ है।

Jyoti

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