बुधवार को दिन में किसी भी समय कर लें इन POWERFUL मंत्रों का जाप, हर विपदा होगी दूर

Wednesday, Jun 05, 2019 - 12:09 PM (IST)

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ज्योतिष शास्त्र में प्रथम पूज्य भगवान श्री गणेश की पूजन विधि के साथ-साथ कई उपाय और मंत्र आदि बताए गए हैं। माना जाता है इन मंत्रों के जाप से गणपति की कृपा हर इच्छा पूरी हो जाती है। इसके अलावा कुछ ऐसे मंत्र है जो अधिक प्रभावशाली और चमत्कारी माने जाते हैं। मगर बहुत कम लोग होते हैं जिन्हें इनके इन खास मंत्रों के बारे में कोई जानकारी नहीं होती। तो चलिए आज हम आपको विघ्नहर्ता श्री गणेश जी के ऐसे पावरफूल और दिव्य मंत्र बताते हैं जिनका अगर हर बुधवार पूरी श्रद्धा से जाप किया जाए तो जातक के जीवन की हर इच्छा पूरी होती है। इतना ही नहीं इन मंत्रों का जो भी जाप करता है लंबोदर खुद उसके सहायक बनकर उसे सारे कार्यों में जीत दिलाते हैं और उसके जीवन से हर विपदा को दूर कर देते हैं।

यहां जानें विघ्नहर्ता बप्पा के MAGICAL मंत्र और उसके भावार्थ-
वक्र तुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ:।
निर्विघ्नं कुरु मे देव शुभ कार्येषु सर्वदा॥

भावार्थ- हे हाथी के जैसे विशालकाय जिसका तेज सूर्य की सहस्त्र किरणों के समान है। बिना विघ्न के मेरा कार्य पूर्ण हो और सदा ही मेरे लिए शुभ हो ऐसी कामना करते हैं।

नमामि देवं सकलार्थदं तं सुवर्णवर्णं भुजगोपवीतम्ं।
गजाननं भास्करमेकदन्तं लम्बोदरं वारिभावसनं च॥

भावार्थ- मैं उन भगवान गजानन की वंदना करता हूं, जो समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं। सुवर्ण तथा सूर्य के समान देदीप्यमान कान्ति से चमक रहे हैं। सर्पका यज्ञोपवीत धारण करते हैं, एकदन्त हैं, लम्बोदर हैं तथा कमल के आसनपर विराजमान हैं।

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एकदन्तं महाकायं लम्बोदरगजाननम्ं।
विध्ननाशकरं देवं हेरम्बं प्रणमाम्यहम्॥

भावार्थ- जो एक दांत से सुशोभित है, विशाल शरीर वाले हैं, लम्बोदर है, गजानन है तथा जो विघ्नों के विनाशकर्ता है, मैं उन दिव्य भगवान् हेरम्बको प्रणाम करता हूं।

विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धितायं।
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥

भावार्थ- विघ्नेश्वर, वर देनेवाले, देवताओं को प्रिय, लम्बोदर, कलाओंसे परिपूर्ण, जगत् का हित करनेवाले, गजके समान मुखवाले और वेद तथा यज्ञ से विभूषित पार्वतीपुत्र को नमस्कार है; हे गणनाथ! आपको नमस्कार है।

द्वविमौ ग्रसते भूमिः सर्पो बिलशयानिवं।
राजानं चाविरोद्धारं ब्राह्मणं चाप्रवासिनम्॥

भावार्थ- जिस प्रकार बिल में रहने वाले मेंढक, चूहे आदि जीवों को सर्प खा जाता है, उसी प्रकार शत्रु का विरोध न करने वाले राजा और परदेस गमन से डरने वाले ब्राह्मण को यह समय खा जाता है।

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गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारु भक्षणम्ं।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्॥

भावार्थ- जो हाथी के समान मुख वाले हैं, भूतगणादिसे सदा सेवित रहते हैं, कैथ तथा जामुन फल जिनके लिए प्रिय भोज्य है, पार्वती के पुत्र हैं तथा जो प्राणियों के शोक का विनाश करने वाले हैं, उन विघ्नेश्वर के चरण कमलों में नमस्कार करता हुं।

रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्यरक्षकं।
भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात्॥

भावार्थ- हे गणाध्यक्ष रक्षा कीजिए, रक्षा कीजिए। हे तीनों लोकों के रक्षक! रक्षा कीजिए; आप भक्तों को अभय प्रदान करने वाले हैं, भवसागर से मेरी रक्षा कीजिये।

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केयूरिणं हारकिरीटजुष्टं चतुर्भुजं पाशवराभयानिं।
सृणिं वहन्तं गणपं त्रिनेत्रं सचामरस्त्रीयुगलेन युक्तम्॥

भावार्थ- मैं भगवान गणपतिकी वन्दना करता हूं जो केयूर-हार-किरीट आदि आभूषणों से सुसज्जित है, चतुर्भुज है और अपने चार हाथों में पाशा अंकुश-वर और अभय मुद्रा को धारण करते हैं, जो तीन नेत्रों वाले हैं, जिन्हें दो स्त्रियां चंवर डुलाती रहती है।

Jyoti

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