विघ्न भगाते हैं श्री गणेश, मिट्टी की डली के रूप में करें स्थापित

Wednesday, Aug 16, 2017 - 11:33 AM (IST)

भारतीय संस्कृति में पंचदेवों की उपासना की परम्परा है। ये पंच देव हैं सूर्य, शक्ति, विष्णु, शिव और गणेश। इन पांचों देवों को परब्रह्म रूप माना गया है। ये पंचदेव ही पंच भूतों के अधिष्ठाता देवता हैं लेकिन इनमें श्री गणेश समस्त गणों के अधिपति भी हैं। गणपति, गजानन, लंबोदर, एकदंत, हेरंब, शूर्पकर्ण, विनायक, विघ्नेश्वर आदि इनके विभिन्न नाम हैं जो इनके रूप, गुण, आकार, स्वभाव आदि को व्यक्त करते हैं।


वस्तुत: भारतीय संस्कृति बड़ी विलक्षण है और वैसे ही विलक्षण हैं श्री गणेश। गज की-सी मुखाकृति वाले, सूप जैसे कान वाले एकदंत गणेश की काया अति स्थूल है। यह स्वभाव से विकट होने पर भी भक्तों की पूजा-अर्चना से शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं क्योंकि आशुतोष भोलेनाथ शिवशंकर के पुत्र जो हैं। यह परब्रह्म रूप गणेश वैदिक परम्परा से चलकर आज के लोकमानस में इतनी गहराई से पैठ चुके हैं कि जनसामान्य के अपने लोकदेवता बन गए हैं।


श्री गणेश की पूजा विभिन्न लोग अपने-अपने ढंग से करते हैं। किसी अन्य देवता को प्रसन्न करने के लिए उनकी पूजा के पूर्व भी श्री गणेश की पूजा अनिवार्य मानी जाती है। ज्ञानी व पंडित वैदिक विधि के अनुसार जब कोई पूजा या अनुष्ठान करते हैं तो सर्वप्रथम ‘श्री गणेशाय नम:’ कह कर ही गणेश जी की प्रथम वंदना कर लेते हैं। वैदिक मंत्रोच्चार के साथ गणेश जी की धातु की प्रतिमा स्थापित की जाए अथवा छोटी-सी सुपारी को कलावा लपेटकर गणपति रूप में स्थापित कर लिया जाए। सभी भक्तों के मन में यह गहन विश्वास होता है कि गणेश जी ने उनकी पूजा स्वीकार कर ली है।


लोक-जीवन में गणेश पूजा की परम्परा ने भारतीय संस्कृति के विशिष्ट आयामों को भी उद्घाटित किया है। हमारे यहां कन्या को ‘दुर्गा’ और बालक को गणपति जी का रूप माना गया है, इसीलिए जिस प्रकार नवरात्रि के दिनों में दुर्गा रूप में कन्याओं की पूजा करके उन्हें भोजन कराने की परम्परा है, उसी प्रकार छोटे बालकों की विनायक रूप में पूजा करने की परम्परा है। विशेषकर विवाहादि मांगलिक अवसरों पर सुपारी के गणेश स्थापित करने के साथ ही परिवार के एक छोटे से बालक को विनायक मानकर चौकी पर बैठाकर उसकी पूजा की जाती है, उसे मिठाई, वस्त्र आदि भेंट किए जाते हैं और उस बालक की प्रसन्नता में गणेश जी की प्रसन्नता निहित मानी जाती है।


श्री गणेश इतने लोकप्रिय, लोक हितकारी व सहज प्रसन्न होने वाले देवता हैं कि मिट्टी की डली के रूप में स्थापित करके पूजा करने पर भी संतुष्ट होकर प्रसन्न हो जाते हैं। हमारे यहां घर-परिवारों में वर्ष भर समय-समय पर पडऩे वाले पर्व-त्यौहारों पर स्त्रियां स्वयं ही प्रत्येक अवसर पर मिट्टी की डली के रूप में विनायक गणेश जी की स्थापना कर लेती हैं। पूजा करते समय पर्व विशेष के देवता की पूजा करके कथा कहने के साथ-साथ विनायक की पूजा कर उनकी कथा भी अवश्य कहती हैं।


एक लोककथा में तो गणेश जी एक सेठ के खेत से बारह दाने अनाज के तोड़ लेते हैं, फिर पश्चाताप स्वरूप बारह वर्ष तक बालक के रूप में रहकर उस सेठ के यहां नौकरी करते हैं। इस अवधि में वे उस परिवार को अनेक प्रकार से सामान्य व्यवहार की सीख भी देते हैं। कहीं किसी कथा में वह सास-बहू के बीच सामंजस्य स्थापित करते हैं तो किसी कथा में वह परिवार के बीच, छल से अधिक धन हड़पने वाले सदस्य को दंडित करके धन का न्यायपूर्ण बंटवारा भी करते हैं। किसी गरीब, ईमानदार परिवार में छोटे बालक के रूप में जाकर खीर बनवा कर खाते हैं और उस घर को सुख-समृद्धि से भर देते हैं। लड्डू का भोग स्वीकारने वाले लंबोदर गणेश इन भोले भक्तों द्वारा अर्पित छोटी-सी गुड़ की डली के भोग से ही संतुष्ट हो जाते हैं। 

Advertising