गांधी जयंती 2019: बच्चों के साथ भी अलग था बापू का स्नेह

Wednesday, Oct 02, 2019 - 08:23 AM (IST)

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एक दिन काका कालेलकर गांधी जी से मिलने उनके निवास पर पहुंचे। उस समय गांधी जी अपनी मेज पर रखे सामान को हटा-हटा कर इधर-उधर कुछ खोज रहे थे पर वह चीज नहीं मिल रही थी जिसकी उन्हें तलाश थी। इससे वह परेशान हो रहे थे। 

काका कालेलकर ने पूछा, ‘‘बापू, क्या खोज रहे हैं? मुझे बताइए। मैं भी आपकी कुछ मदद करूं।’’ 

गांधी जी बोले, ‘‘एक पैंसिल खो गई है, उसे खोज रहा हूं। कुछ देर पहले तो थी पर कहीं रख भूल गया।’’ 

काका कालेलकर ने अपनी जेब से पैंसिल निकाल कर गांधी जी को देते हुए कहा, ‘‘यह लीजिए पैंसिल, अभी तो आप इससे काम कर लीजिए, उसे बाद में खोज लेंगे।’’

गांधी जी बोले, ‘‘नहीं काका, जब तक वह पैंसिल नहीं मिलेगी मुझे चैन नहीं मिलेगा।’’

काका कालेलकर बोले, ‘‘उस पैंसिल में ऐसी क्या खास बात है, जो उसके लिए आप इतने परेशान हो रहे हैं? अगर वह न मिली तो क्या कुछ बिगड़ जाएगा?’’

गांधी जी ने उत्तर दिया, ‘‘काका, तुम नहीं जानते। वह पैंसिल मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। उसके साथ एक छोटे बालक का प्यार जुड़ा हुआ है। मैं उसे खोजकर ही दम लूंगा।’’

काका कालेलकर ने उत्सुकता के साथ पूछा, ‘‘वह बच्चा कौन है? मुझे भी तो बताइए।’’

गांधी जी बोले, ‘‘मद्रास वाले नरेशन के 4-5 साल के बालक ने बड़े प्रेम से वह पैंसिल मुझे दी थी और मुझ से वचन लिया था कि इसे खोना नहीं। तब से आज तक मैंने उसे संभाल कर रखा था।’’

गांधी जी की परेशानी को समझ कर काका कालेलकर भी पैंसिल की खोज में जुट गए। बाद में वह पैंसिल एक फाइल के बीच फंसी हुई मिली। गांधी जी को उस छोटी-सी पैंसिल ने देर तक परेशान किए रखा। गांधी जी उसे पाकर बहुत प्रसन्न हुए फिर बोले, ‘‘अब जान में जान आई।’’ 

ऐसा था गांधी जी का बच्चों के प्रति प्यार और वह ऐसे थे वायदे के पक्के।  
   

Lata

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