क्यों पड़ा मां के चौथे अवतार का नाम कूष्मांडा ?

Tuesday, Apr 09, 2019 - 03:47 PM (IST)

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आज चैत्र नवरात्रि का चौथा दिन है |  इस दिन  मां दुर्गा के चौथे अवतार देवी कूष्माण्डा की पूजा होती है | मां के समस्त रूपों की तरह ये अवतार भी अति मनमोहक और सुख प्रदान करने वाला है। शास्त्रों के अनुसार दुर्गा के नौ रूपों से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जिसमें देवी के इन अवतारों के अवतरण की गाथा का पता लग सकता है। तो आइए मां के चौथे नवरात्रि के मौके पर जानते हैं देवी कूष्माण्डा की कथा के साथ-साथ इनके मंत्र और पूजन विधि के बारे में-

मंत्र-
या देवी सर्वभू‍तेषु कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। 
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

नवरात्र पर्व पर मां कूष्माण्डा की आराधना का विधान है। आदिशक्ति दुर्गा के कूष्माण्डा रूप में चौथा स्वरूप भक्तों को सभी सुख प्रदान करने वाला है। कहते हैं जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। शब्द कूष्माण्डा का संधि विच्छेद कुछ इस प्रकार है के कुसुम का अर्थ है फूलों के समान हंसी (मुस्कान) और आण्ड कर का अर्थ है ब्रहमाण्ड अर्थात वो देवी जो जिन्होंने अपनी मंद (फूलों) सी मुस्कान से सम्पूर्ण ब्रहमाण्ड को अपने गर्भ में उत्पन्न किया है वही मां कूष्माण्डा है। "

मां कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। मां कूष्माण्डा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं। इनकी आराधना करने से भक्तों को तेज, ज्ञान, प्रेम, उर्जा, वर्चस्व, आयु, यश, बल,आरोग्य और संतान का सुख प्राप्त होता है। इनको साधने से भक्तों के सभी प्रकार के रोग, शोक, पीड़ा, व्याधि समाप्त होती है तथा हृदय में शुद्ध रक्त का संचार होता है। मां कूष्माण्डा की साधना या उपासना करने से शारीरिक कष्ट समाप्त होते हैं। यदि मनुष्य सच्चे हृदय से इनका शरणागत बन जाए तो फिर उसे अत्यन्त सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो सकती है। 

मां का स्वरूप-
देवी कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं, जिनमें कमंडल, धनुष-बाण, कमल पुष्प, शंख, चक्र, गदा और सभी सिद्धियों को देने वाली जपमाला है। इन सब के इनके अलावा हाथ में अमृत कलश भी है। इनका वाहन सिंह है। मान्यता है इनकी भक्ति से आयु, यश और आरोग्य की वृद्धि होती है।

पूजन-विधि-
देवी को दिव्य रूप को मालपुए का भोग लगाए। इसके बाद किसी दुर्गा मंदिर में जाकर इसे ब्राह्मणों में प्रसाद के तौर पर बांट दें। इसके अलावा देवी को लाल वस्त्र, लाल पुष्प और लाल चूड़ी ज़रूर अर्पित करें।

उपासना मंत्र- 
ॐ कुष्मांडा देव्यै नमः 
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Jyoti

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