थोड़ी देर के लिए आप भी आदमी बन जाइए न

Monday, Jul 10, 2017 - 09:02 AM (IST)

एक बार एक प्यासा आदमी एक दुकान पर गया और मालिक से बोला, ‘‘सेठजी प्यास लगी है, थोड़ा पानी पिला दो।’’ 


सेठ ने कहा कि अभी उनके पास कोई आदमी नहीं है और फिर अपने मोबाइल पर लग गया। प्यासा आदमी पानी की तलाश में आसपास गया पर कहीं पानी नहीं मिला। कुछ देर बाद वह उसी दुकान पर लौट आया और दुकान के मालिक से बोला, ‘‘सेठजी सचमुच बहुत प्यास लगी है, थोड़ा पानी पिला दो।’’ 


सेठजी ने कहा, ‘‘अभी बोला था न कि कोई आदमी नहीं है।’’ 


प्यासे आदमी ने कहा, ‘‘सेठजी, थोड़ी देर के लिए आप ही आदमी बन जाइए न।’’


इस दृष्टांत ने मनुष्य होने पर सोचने को मजबूर किया है। प्राचीन ग्रंथों में जगह-जगह लिखा है मनुर्भव, अर्थात मनुष्य बन। क्या हम सचमुच मनुष्य नहीं हैं? मनुष्य वास्तव में अपने कर्मों अथवा कार्यों से जाना जाता है। जैसे कर्म वैसा मनुष्य। 


हम प्राय: अपनी हैसियत के मुताबिक अपने कार्यों को निश्चित कर लेते हैं। हम किसी बड़े पद पर आसीन अथवा बहुत दौलतमंद हो जाते हैं तो सोचते हैं कि अब छोटे-मोटे कार्य करना हमारे लिए सम्मानजनक नहीं। मगर कुछ कार्य ऐसे होते हैं जो बेशक छोटे दिखते हों लेकिन छोटे होते नहीं हैं। इन कार्यों को हमारे लिए अन्य कोई कर भी नहीं सकता। क्या हमारे बदले में हमारी जगह कोई किसी से प्रेम कर सकता है? संभव ही नहीं।  किसी को एक गिलास पानी दे देना कोई बड़ी बात नहीं लेकिन किसी प्यासे को पानी पिलाने से बड़ा धर्म ही नहीं। इस कार्य को करने से जो संतुष्टि मिलती है, वह अद्वितीय होती है। यदि हम यह कार्य किसी और से करवाते हैं अथवा नहीं करते हैं तो हम उस आनंद से वंचित ही रह जाते हैं। 


जो भी अच्छे कार्य होते हैं अथवा जिनमें धार्मिक होने का भाव निहित रहता है वो वास्तव में मनुष्य के स्वयं के उत्थान के लिए होते हैं। उन कार्यों की उपेक्षा करके कहने को तो हम मनुष्यता से वंचित हो जाते हैं लेकिन वास्तव में अपने आध्यात्मिक विकास को ही अवरुद्ध कर लेते हैं। यदि हम काल्पनिक प्रतिष्ठा की कामना से रहित होकर फौरन किसी की मदद करने का संकल्प ले लें तो न केवल अधिक मानवीय हो सकेंगे अपितु हमारा वास्तविक आध्यात्मिक विकास भी संभव हो सकेगा।

Advertising