आत्मा और परमात्मा को देखने के लिए अपनाएं ये Technique

Thursday, Mar 12, 2020 - 10:07 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
संसार में जानने को बहुत कुछ है, पर सबसे महत्वपूर्ण जानकारी अपने आपसे संबंध की है। उसे जान लेने पर बाकी जानकारियां प्राप्त करना सरल हो जाता है। ज्ञान का आरंभ आत्मज्ञान से होता है। जो अपने को नहीं जानता वह दूसरों को क्या जानेगा? आत्मज्ञान जहां कठिन है, वहां सरल भी बहुत कुछ है। अन्य वस्तुएं दूर हैं तथा उनका सीधा संबंध भी अपने से नहीं है। किसी के द्वारा ही संसार में बिखरा हुआ ज्ञान पाया और जाना जा सकता है पर अपनी आत्मा सबसे निकट है, आदि से अंत तक हम उसमें समाए हुए हैं, इस दृष्टि से आत्मज्ञान सबसे सरल भी है। बाहर की चीजों को ढूंढने में मन इसलिए लगा रहता है कि अपने को ढूंढने के झंझट से बचा जा सके क्योंकि जिस स्थिति में आज हम हैं उसमें अंधेरा और अकेलापन दिखता है। यह डरावनी स्थिति है। सुनसान को कौन पसंद करता है? खालीपन किसे भाता है? पर हमने स्वयं ही अपने को डरावना बना लिया है और उससे भयभीत होकर स्वयं ही भागते हैं। अपने को देखने, खोजने और समझने की इज्छा इसी से नहीं होती और मन बहलाने के लिए बाहर की चीजों को ढूंढते फिरते हैं।
Follow us on Twitter
Follow us on Instagram
प्रकाश की ज्योति पुंज अपने भीतर विद्यमान है और एक पूरा संसार ही अपने भीतर विराजमान है। उसे पाने और देखने के लिए आवश्यक है कि मुंह अपनी ओर हो। पीठ फेर लेने से तो सूर्य भी दिखाई नहीं पड़ता और हिमालय तथा समुद्र भी दिखना बंद हो जाता है। फिर अपनी ओर पीठ करके खड़े हो जाएं, तो शून्य के अतिरिक्त दिखेगा भी क्या?

ईश्वर को भी यदि बाहर देखा जाएगा, तो उसके रूप में माया ही नजर आएगी। अंदर जो है वही सत्य है। इसे अंतर्मुखी होकर देखना पड़ता है। आत्मा और उसके साथ जुड़े हुए परमात्मा को देखने के लिए अंत:दृष्टि की आवश्यकता है। इस प्रयास में अंतर्मुखी हुए बिना काम नहीं चलता।

Lata

Advertising