ऐतिहासिक स्थल जो 100 की उम्र में भी जवां हैं

Sunday, Feb 25, 2024 - 08:19 AM (IST)

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चमचमाती रोशनियां, चिकनी सड़कें और देश की सबसे मशहूर व महत्वपूर्ण हैरिटेज इमारतों की संगत।मुंबई के फोर्ट इलाके का एड्रैस अपने आप में एक रुतबा और कामयाबी की मिसाल है। इन इमारतों में कुछ कारोबारी भी हैं। 100 वर्ष से भी अधिक पुरानी, इनका इतिहास भी उतना ही गौरवपूर्ण है, जितना इन इमारतों का।

अकबरअलीज’ - देश का पहला डिपार्टमैंटल स्टोर
कारोबारी अकबर अली इब्राहिमजी और उनके भाई ताहिरभाई खोराकीवाला ने 1897 में पालनपुर (गुजरात)से मुंबई आकर गनबो स्ट्रीट की एक छोटी-सी दुकान में राशन, मिट्टी का तेल, दवा आदि बेचकर ‘अकबरअली इब्राहिमजी ड्रग स्टोर’ के नाम से जिस उद्यम की नींव रखी, उसका शुमार आज एक ही छत के नीचे हर तरह के सामान बेचने वाले देश के सबसे बड़े स्टोर्स में होता है। ‘अकबरअलीज’ देश का ऐसा पहला डिपार्टमैंटल स्टोर कहलाता है, जिसने खरीदारी की धारणा ही बदल दी। इसकी मुंबई ही नहीं, देश के दूसरे हिस्सों में भी शाखाएं हैं। आज यह कारोबार खोराकीवाला घराने की पांचवीं पीढ़ी के हाथों में है। नामी फार्मा कम्पनी से लेकर केक व कंफैक्शनरी (मोंजिनीज) और स्वास्थ्यचर्या तक में ग्रुप का नाम है। इसके अध्यक्ष फखरुद्दीन खोराकीवाला मुंबई के शैरिफ रह चुके हैं।

‘नोटेशन एंटी कोट्स’ - एंटीक शॉप और अजायबघर
समय जैसे यहां स्थिर हो गया है। फोर्ट में काला घोड़ा से सटे शहीद भगत सिंह मार्ग के एंटीक स्टोर ‘नटेशंस एंटी कोट्स’ में जाइए, दुकान के हर कोने पर ऐतिहासिक पुरावशेष आपको घूरते मिलेंगे। कुछ वर्षों बाद यह एंटीक शॉप अपनी शताब्दी पूरी कर लेगी।

काष्ठ, प्रस्तर व कांस्य कलाकृतियां, मिनिएचर पेंटिंग्स, गिफ्ट, इंटीरियर डिजाइनिंग तक इस स्टोर में ज्यूलरी छोड़कर वह सब कुछ मिलेगा, जो कलात्मक है और जिसे एंटीक कहा जा सकता है। 1930 में स्थापित नटेशंस का मुख्य स्टोर केरल के त्रिवेंद्रम में है और मुंबई का स्टोर उससे 34 वर्ष छोटा है। ‘नटेशंस’ के ज्यादातर कलैक्शन निजी संग्राहकों से हासिल किए हुए हैं। कुछ मंदिरों में हुई नीलामी में खरीदे हुए और कुछ विदेशों से आयातित भी हैं। दीगर बात है कि बेशकीमती होने की वजह से यहां से खरीदारी केवल धनी-मनियों और संग्राहकों के ही वश में है, क्योंकि यहां शायद ही कोई सामान पांच अंकों से कम कीमत में उपलब्ध है।यहां से पैदल दूरी पर स्थित 180 वर्ष से भी अधिक पुरानी अन्य एंटीक शॉप ‘फिलिप्स’ तो अपने-आप में एक अजायबघर ही है।

जवेरी ब्रदर्स -अपने आप में यादगार
दीवारों पर ऐतिहासिक फोटोग्राफ्स, शोकेस में पुराने बिल, विज्ञापन, अखबारों की कतरनें और पुराने जमाने में प्रयुक्त उत्पाद। वैसे तो पूरा फोर्ट इलाका ही ट्रॉफियों की दुकानों का हब है, पर जवेरी ब्रदर्स एंड कम्पनी का जवाब नहीं। धोबी तालाब में ट्रॉफी, प्रशस्तिपत्रों और यादगारियों की यह दुकान अपने-आप में इसके संचालकों के लिए किसी ट्रॉफी से कम नहीं है। इस 27 जुलाई को यह उम्र के 110 वर्ष पूर्ण कर लेगी।
यहां आपको किसी भी रूप, आकार, रंग और सामग्री में मनपसंद ट्रॉफियां अपने ऑर्डर के अनुसार मिल जाएंगी।

जवेरी ब्रदर्स की स्थापना श्यामदास जवेरी ने 1914 में की थी, जो नौ वर्ष की उम्र में महज नौ रुपए जेब में रखकर अपना मुकाम बनाने भावनगर से मुंबई आए थे। कुछ समय उन्होंने क्रॉफर्ड मार्केट नरोत्तम भाऊ ज्वैलर्स के यहां सेल्समैन का काम किया और धीरे-धीरे अपनी मेहनत और लगन से वहां पहले साझीदार और फिर एक लाख रुपए में पूरी फर्म खरीदकर उसके मालिक बन गए। मौजूदा स्थान पर यह दुकान 1938 से है।

दिलीप कुमार व नरगिस सरीखे ख्यातनाम लोग, मुंबई हाईकोर्ट जैसी संस्थाएं और रिलायंस व टाटा जैसी कंपनियां उसकी ग्राहक हैं। ऐतिहासिक निर्माणों से भरा क्रॉफर्ड मार्केट का यह इलाका कयानी, यूनिवर्सल बुक स्टोर और एल.एम. पुसटार्डो सरीखी सौ से भी ज्यादा साल पुरानी कुछ अन्य मशहूर दुकानों का भी घर है।

लॉरेंस एंड मेयो - चश्मे का दूसरा नाम
लॉरेंस एंड मेयो 1877 से मुंबई में चश्मे का पर्याय बना हुआ है। फोर्ट में नियो क्लासिकल श्रेणी की जिस मैकमिलन बिल्डिंग में यह स्टोर मौजूद है, वह खुद करीब सवा सौ वर्ष से अधिक पुरानी है। 1930 के दशक में आइसोडोरा मेंडोंसा द्वारा ब्रिटिश कंपनी से अधिग्रहण के बाद लॉरेंस एंड मेयो बिल्डिंग के नाम से ही जानी जाती है। कोई 25 वर्ष पहले जानी-मानी संरक्षण वास्तुविद् आभा नारायण लांबा की अगुवाई में हुए संरक्षण कार्य के बाद इमारत अपनी पुरानी शोभा में लौट आई है। यहीं पड़ोस में मशहूर आर्मी एंड नेवी बिल्डिंग है। 1897-88 में पीले सैंडस्टोन और पोरबंदर पत्थरों से बनी यह इमारत देश की आजादी से पहले तक भव्य स्टोर के तौर पर जानी जाती थी और आज भी अपने फैशन स्टोर के कारण।

हैमिल्टन स्टूडियो - छह लाख नेगेटिव का खजाना
ट्रॉफियों और स्मृतिचिन्हों से ठसाठस भरे बेलार्ड एस्टेट के पास मौजूद हैमिल्टन स्टूडियो की सबसे बड़ी संपत्ति है, जीर्ण हो रही दीवारों पर टंगे चित्र। इनमें हर चित्र का अपना इतिहास है। ‘हैमिल्टन’ पुराने ढंग का सही, पर फोटोग्राफी कला का मानक माना जाता है। स्टूडियो की सबसे खास बात है, यहां छह लाख नैगेटिव्स का खजाना। सिर्फ 5 वर्ष बाद यह अपनी शताब्दी पूर्ण कर लेगा।

इंडियन आर्ट स्टूडियो - गांधी, नेहरू और सुभाष का स्टूडियो
फोर्ट से कुछ ही दूरी पर कालबादेवी रोड के जंक्शन के बीचों-बीच गुलमोहर बिल्डिंग में स्थित इंडियन आर्ट स्टूडियो कई अनमोल विरासतों को समेटे हुए और देश के सबसे पुराने स्टूडियोज में से एक है। महज कुछ वर्ष पहले ही इसने अपनी 100वीं वर्षगांठ मनाई है। स्टूडियो में बहुत कुछ, यहां तक कि बल्ब तक उस जमाने के हैं, 1917 में जब से स्टूडियो खुला। आज भी आपको उनके हस्ताक्षरों के साथ यहां महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और सुभाषचंद्र बोस के फोटो देखने को मिल जाएंगे। 


 

Prachi Sharma

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