सावधान! ये हैं भूत, प्रेत और पिशाच की Favourite places

Monday, Jul 06, 2020 - 02:00 PM (IST)

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Favourite places of negative powers: भूत, प्रेत और पिशाच मन तथा अंतर्मन पर नियंत्रण करके मानसिक शारीरिक पीड़ा देते हैं और पूर्णिमा के आसपास आगे पीछे भूत प्रेत बाधा ग्रस्त होने के अधिक अवसर रहते हैं। संध्या समय, मध्याह्न गंदी जगह, श्मशान, निर्जन स्थान, खंडहर, घना जंगल, निर्जन मकान आदि स्थानों के समय संयोग बनने पर निर्बल व्यक्ति पर भूत, प्रेत, पिशाच दुष्प्रभाव डालकर पीड़ा पहुंचाते हैं। इनका प्रकोप पीड़ा विद्युत तरंगों की भांति झटके मारता है तथा पीड़ित व्यक्ति को बेहोश अथवा संज्ञा शून्य कर देता है तथा मन और शरीर दोनों ही शिथिल हो जाते हैं। आंखों तथा चेहरे पर विचित्र डरावनी भाव भंगिमा बनती है।

ये ग्रह स्थितियां भूत, प्रेत और पिशाच पीड़ा का योग बनाती हैं : अशुभ बृहस्पति नवमेश (भाग्येश होकर 8, 12 भाव में स्थित हो)।
पाप ग्रह कुंडली के अशुभ भावेश होकर केंद्र त्रिकोण में स्थित हो।
चंद्रमा निर्बल, क्षीण, अस्त, नीचराशि वृश्चिक में, शत्रु राशि में पापयुत दुष्ट पापग्रह की राशि में होकर 6, 8, 12 भावों में हो। 
लग्न लग्नेश पर पाप ग्रहों का प्रभाव स्थिति युति दृष्टि और लग्नेश का नीच राशि होकर 6, 8, 12 भावों में स्थित होना, लग्न में नीच राशि ग्रह, वक्री ग्रह 6, 8,12 के भावेश स्थित होना। 

उदाहरण कुंडली: यहां दी गई कुंडली पिशाच पीड़ित जातक की है। कुंडली की ग्रह स्थितियां पिशाच पीड़ा का योग बनाती हैं।
8 में मंगल 12वें में राहू स्थित है।

बुध को छोड़कर कोई शुभग्रह केंद्र में स्थित नहीं है।

लग्नेश बृहस्पति पर अष्टम भाव में स्थित नीच के मंगल की अष्टम दृष्टि है।

चंद्रमा सूर्य से युत होकर अस्त है तथा अष्टमेश है एवं उसका स्वराशि कर्क से अशुभ द्विद्वादश संबंध  है।

अष्टम भाव में नीच राशि मंगल स्थित है।

लग्नेश बृहस्पति आकाश तत्व है तथा वायुराशि कुंभ में स्थित है जो अग्रि की अभिपूरक (मित्र राशि) में स्थित हैं जिसके कारण तीव्र प्रेम बाधा योग बनता है।

शरीर की अंर्तनिहित शक्तियों का कारक ग्रह सूर्य तथा मन का कारक ग्रह चंद्रमा भी वायु प्रधान राशि मिथुन में स्थित है।

स्वराशि का बुध वक्री तथा अस्त होकर अशुभ फलदायक है। 

इस प्रकार उदाहरण कुंडली में प्रबल भूत-प्रेत पीड़ा तथा योग बनता है।

कुंडली में भूत-प्रेत बाधा पीड़ा मुक्ति के शुभ योग: लग्न बलवान हो उसमें उच्च का शुभ ग्रह बैठे, बुध, बृहस्पति, शुक्र बैठे हों तथा लग्नेश उच्च राशि स्वराशि का होकर केंद्र त्रिकोण में बैठा हो।

चंद्रमा बलवान उच्च राशि वृषभ, स्वराशि कर्क में केंद्र त्रिकोण में स्थित हो तथा शुभग्रहों से युक्त दृष्ट हो।

अष्टम तथा द्वादश भावों पर शुभग्रहों की दृष्टि हो। इन भावों में शुभ ग्रह की राशि हो अथवा भावेशों पर शुभग्रहों की दृष्टि हो तथा उनसे शुभयोग संबंध भी हो।

छठे स्थान पर राहू शनि की युति प्रेत पिशाच पीड़ा भय। 

सातवें स्थान में शनि पत्नी के प्रेत (चुड़ैल) से पीड़ा अथवा पत्नी को पति के प्रेत (भूत) से पीड़ा का कारण बनते हैं।

 

Niyati Bhandari

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