दुख का सबसे बड़ा कारण है Expectation

Tuesday, Jan 28, 2020 - 10:06 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
हर इंसान की इच्छाएं एवं आकांक्षाएं अनंत हैं। हम जीवन में ऊंचा पद, यश, कीर्ति, वैभव चाहते हैं। हम चाहते हैं कि हमारा नाम अखबार में छपे, टी.वी. पर आए। हम आर्थिक एवं राजनीतिक साम्राज्य चाहते हैं। वैज्ञानिक, साहित्यकार, चित्रकार, संगीतकार, कलाकार, राजनीतिज्ञ, समाजसेवी आदि सबमें इसकी होड़ लगी है। दुनिया का ऊंचे से ऊंचा पद या पुरस्कार पाने की लालसा प्रत्येक व्यक्ति में दिखाई देती है परंतु इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता है कि सफल तो एक होता है, शेष सभी दुखी होते हैं।

आकांक्षा प्रगति या विकास की जननी है परंतु दुख का मूल भी है। बहुत अधिक अहं का भाव हमारी दुनिया को छोटा कर देता है। भीतर और बाहरी दोनों ही दुनिया सिमट जाती हैं। तब हमारा छोटा-सा विरोध गुस्सा दिलाने लगता है। छोटी-सी सफलता अहंकार बढ़ाने लगती है। थोड़ा-सा दुख अवसाद का कारण बन जाता है। कुल मिलाकर पूरी सोच ही गड़बड़ा जाती है।

साधनों की प्रचुरता के बावज़ूद सुखी महसूस न करने पर आनंद की खोज में कुछ लोग अंयत्र भटकते हैं। कुछ लोग यश-कीर्ति में आनंद खोजते हैं तो वे कलाकार, साहित्यकार, राजनेता, समाजसेवी आदि बन जाते हैं। जो इसमें भी सुखी नहीं होते वे अंत में अंतर की खोज प्रारम्भ कर अध्यात्म में रमण करते हैं परंतु ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है जो अध्यात्म में सही जगह पर पहुंच जाएं। दुख जीवन का शाश्वत सत्य है।

दुख का निवारण कैसे हो? इसकी खोज में अनंत काल से मनीषियों ने अपना जीवन लगाया और पाया कि दुख का कारण है और इसका निवारण भी है। दुख के कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण है चाह, इच्छा या कामना। चाहे का न होना और अनचाहे का हो जाना दुख का मूल कारण है। हम जन्म से ही कुछ न कुछ चाहते हैं और चाह की पूर्ति न होने पर हम दुखी होते हैं। 

Jyoti

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