शास्त्रों के अनुसार रखें एकादशी व्रत, तपस्या के समान मिलेगा पुण्य

Tuesday, Jun 16, 2020 - 10:30 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Ekadashi: वर्तमान समय को शास्त्रों में 'कलयुग' कहा गया है। सतयुग, त्रेतायुग व द्वापरयुग के मनुष्य अधिक तपस्या करने व शरीर के कई क्लेशों को सहने का सामर्थ्य रखते थे। आमतौर पर देखा जाता है कि कलयुग में व्यक्ति की आयु बहुत ज्यादा नहीं होती। उसमें भी वे निरन्तर अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिये संघर्ष करता रहता है। इसी वजह से वे अधिक समय तक तपस्या नहीं कर सकते।

इन्हीं कारणों से कलयुग में जन्मे मनुष्य के लिए हमारे शास्त्रों में बहुत ही कम समय की तपस्या करने की व्यवस्था दी गई है अर्थात कलयुग के मनुष्यों के लिए महीने के केवल दो दिन ही तपस्या करने का विधान है। महीने के दो दिन अर्थात एकादशी तिथि वाले दिन बिना भोजन-पानी के निराहार व निर्जल रहकर तपस्या करनी होती है। कलयुग में हर मनुष्य को वैसे तो रोज़ाना, नहीं तो कम से कम एकादशी के दिन हरि-कीर्तन करना चाहिए। एकादशी को हरिवासर भी कहते हैं।

श्रीहरिवासरे हरि-कीर्तन विधान
जो तो पूरा एकादशी व्रत करने में समर्थ हैं, वे एकादशी से एक दिन पहले अर्थात दशमी के दिन एक बार खाना खाते हैं। एकादशी के दिन कुछ भी खाते-पीते नहीं हैं, यहां तक कि पानी भी नहीं पीते तथा एकादशी के अगले दिन अर्थात द्वादशी के दिन भी एक बार ही भोजन ग्रहण करते हैं।

जो लोग इतना नहीं कर पाते उनके लिए नियम है कि वे लोग दशमी व द्वादशी को नियमित रूप से भोजन करते हैं तथा एकादशी को कुछ भी नहीं पीते या खाते। जो लोग इतना भी नहीं कर सकते, वे दशमी को पूरा खाना खाते हैं और एकादशी को केवल फल इत्यादि ही ग्रहण करते हैं।

वैसे एकादशी के दिन हर तरह के फल, दूध, पनीर, दही, जल, आलू, घी, मूंगफली या उसका तेल, सैंधा नमक, काली मिर्च का सेवन कर सकते हैं। एकादशी के दिन सभी प्रकार के पाप अन्न में आ बसते हैं। इस दिन अन्न खा लेने से, पाप के फल का भागी होना पड़ता है। पूरे वर्ष में 24 एकादशी होती हैं। जिनका अपना-अपना महत्व है। 

 

Niyati Bhandari

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