अहंकार का प्रदर्शन ही मन की अशांति का कारण है

Monday, Jun 15, 2020 - 11:32 AM (IST)

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सुगंधपुर के राजा वज्रबाहु ने प्रजा के हित के लिए जगह-जगह तालाब बनवाए, धर्मशालाएं तथा मंदिर बनवाए। वे हर क्षण प्रजा की सुविधा तथा सेवा के लिए तत्पर रहते थे। उनकी कीर्ति पूरे देश में प्रजा वत्सल शासक के रूप में फैल चुकी थी। एक बार कोई महान संत उनके राज्य में पधारे। वे घनघोर जंगल में एक वृक्ष के नीचे ठहर गए। राजा वज्रबाहु को पता लगा तो उन्होंने अपने मंत्री तथा पुत्र  को उनके पास भेजा।

राजकुमार ने प्रार्थना की, ‘‘महात्मन, महाराजा ने आपको सादर राजमहल में आमंत्रित किया है। आप हमारे महल को अपने चरणों से पवित्र करने की कृपा करें।’’

संत जी ने उत्तर दिया, ‘‘राजकुमार, संतों को एकांत में ही रह कर साधना करनी चाहिए। आप वापस लौट जाएं, राजा को हमारा आशीर्वाद पहुंचा दें।’’

राजा वज्रबाहु संत की विरक्तता से और भी प्रभावित हुए तथा सवेरे रथ में सवार होकर जंगल में जा पहुंचे।

उन्होंने संत जी को प्रणाम कर प्रश्र किया, ‘‘महात्मन्, मैंने यथाशक्ति प्रजाजनों की सेवा की है। उन्हें तरह-तरह की सुविधाएं मुहैया कराई हैं। फिर भी मेरा मन अशांत रहता है। इसका क्या कारण है?’’

संत जी ने समझाया, ‘‘राजन, आपने तालाब, मंदिर बनवाए हैं परन्तु आपके अनुचरों ने उन पर आपके नाम-पट्ट लगवा कर आपके पुण्य को क्षीण कर दिया है। सेवाकार्यों में अहंकार का प्रदर्शन ही मन की अशांति का कारण है। अहम् व शांति दोनों एक साथ नहीं रह सकते ।’’

और उसी शाम राजा वज्रबाहु ने तालाबों, मंदिरों तथा अन्य स्थानों पर लगे नाम-पट्ट उखड़वाने के आदेश दे दिए। उनका हृदय अहंकार से मुक्त हो चुका था। 

Jyoti

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