Dwijapriya Sankashti Chaturthi: आज शुभ मुहूर्त में करें पूजा, बप्पा भरेंगे खुशियों से झोली

Thursday, Feb 09, 2023 - 07:47 AM (IST)

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Dwijapriya Sankashti Chaturthi 2023: हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। पंचांग के अनुसार आज फाल्गुन मास की पहली संकष्टी चतुर्थी है। आज के दिन गणेश जी के छठे स्वरूप द्विज गणपति की पूजा का महत्व है। इस रूप में उनके ज्ञान और संपत्ति अहम गुण हैं। जिन जातको को अपने जीवन में इन वस्तुओं को प्राप्त करने की इच्छा होती है, वे बप्पा के इस रूप की पूजा करते हैं। गणेश जी की उपासना करके व्यक्ति सुख-समृद्धि का वरदान पा सकता है। आज के दिन व्रत रखने से व्यक्ति को मानसिक शांति मिलती है और चंद्र दोष भी खत्म हो जाता है। तो आइए जानते हैं कि कौन से शुभ मुहूर्त में पूजा करने से गौरी पुत्र खुशियों से झोली भर देते हैं


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Sankashti chaturthi vrat shubh muhurt संकष्टी चतुर्थी व्रत शुभ मुहूर्त:
फाल्गुन कृष्ण संकष्टी चतुर्थी तिथि शुरू -
09 फरवरी 2023, सुबह 06.23
फाल्गुन कृष्ण संकष्टी चतुर्थी तिथि समाप्त - 10 फरवरी 2023, सुबह 07.58
चंद्रोदय समय - 9 फरवरी 2023 रात 09 बजकर 25 मिनट पर


Sukarma Yoga is being made बन रहा है सुकर्मा योग: आज के दिन सुकर्मा योग प्रात:काल से आरंभ होकर शाम 04:46 बजे तक रहेगा। इस समय में किये गए कार्य शुभ परिणाम देते हैं। ऐसे में चतुर्थी की पूजा सुबह करनी चाहिए।

Sankashti Chaturthi Puja vidhi संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि: आज के दिन स्नान-ध्यान कर गणेश जी की पूजा की तैयारी करें। लाल रंग के वस्त्र पहन कर पूजा करें क्योंकि बप्पा को लाल रंग बहुत प्रिय है। एक चौंकी पर लाल कपड़ा बिछा कर गणेश जी की प्रतिमा को स्थापित कर गणेश जी को जल, अक्षत, दूर्वा घास, लड्डू, पान, धूप आदि चढ़ाएं। संकष्टी चतुर्थी का व्रत शाम के समय चंद्र दर्शन के बाद ही खोला जाता है। चांद निकलने से पहले ही गणपति की पूजा करनी चाहिए। सारी पूजा होने के बाद हाथ जोड़ कर पार्वती नंदन से घर की सुख-शांति की कामना करें और गणेश जी के इन मंत्रों का जाप करें।

Ganesh ji mantra गणेश जी मंत्र:
गणेश जी को प्रसन्न करने का मंत्र:

ऊँ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात।

र्विघ्न हरण का मंत्र:
वक्र तुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ:।
निर्विघ्नं कुरु मे देव शुभ कार्येषु सर्वदा॥

संकट दूर करने का मंत्र:
एकदन्तं महाकायं लम्बोदरगजाननम्ं।
विध्ननाशकरं देवं हेरम्बं प्रणमाम्यहम्॥

Niyati Bhandari

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