Durva Ashtami: कम ही लोग जानते हैं, दूर्वा अष्टमी से जुड़ी हैं ये पौराणिक कथाएं

Friday, Sep 22, 2023 - 07:10 AM (IST)

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Durva Ashtami 2023: आज दूर्वा अष्टमी का त्योहार है। जो दो शब्दों के जोड़ से बना है दुह और अवम। दुह का अर्थ है परम अध्यात्मिक और अवम का अर्थ है कण। दूर्वा का कण तीन भागों में विभाजित होता है। जिन्हें भगवान गणेश, महाशक्ति और भगवान शंकर का प्रतीक माना जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार दूर्वा घास गणेश जी का आशीर्वाद ग्रहण करने की क्षमता रखता है। इस कारण इसकी कोमलता व शुद्धता के रुप को भगवान के आगे अर्पित करने से मन की इच्छाएं बहुत जल्दी पूरी होती हैं।

दूर्वा घास की शीतलता व महत्वता का प्रमाण पौराणिक काल की भगवान गणेश व अनलासुर नाम के राक्षस के भीषण युद्ध कथा से मिलता है। जब गणेश जी ने देवताओं की रक्षा के लिए विराट रुप धारण कर अनलासुर नामक दैत्य के द्वारा फेंके गए अग्नि के गोलों को निगल लिया था। उसे उत्पन्न हुई अग्नि का ताप भगवान गणेश को पीड़ा देने लगा। तब इस पर चन्द्र देव ने भगवान गणेश के मस्तक पर अपनी शीतलता देकर उसे शांत करने का प्रयास किया। इसके पश्चात भगवान विष्णु ने अपने कमल की पंखुड़ियों के द्वारा इस आग्नि को शांत करने का प्रयास किया। भगवान शिव ने अपने गले का सर्प शीतलता देने के लिए गणेश जी के उदर पर लपेट दिया परंतु कोई भी प्रयास अग्नि को शांत न कर पाया। इसके बाद कुछ ऋषियों ने दुर्वा घास का 1 कण भगवान गणेश को दिया। जिसके तुरंत बाद उनके उदर की गर्मी शांत हो गई। इसके बाद दुर्वा घास को पवित्रता का दर्जा प्राप्त हुआ।

अन्य मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु के हाथ से गिरे केश अथवा रोम से दूर्वा की उत्पति हुई थी। इसके बाद समुद्र मंथन के अमृत की कुछ बूंदे दूर्वा घास पर गिर जाने से ये और भी पवित्र और अमर मानी जाती है।

रामायण में दूर्वा का विशेष महत्व बताया गया है। ये स्त्री के सम्मान का प्रतीक भी मानी जाती है क्योंकि जब रावण सीता माता का हरण कर उन्हें जबरन लंका ले गया था। वहां उनका शील हरण करने की चेष्टा कर रहा था, उस समय दूर्वा के छोटे से तिनके ने उनके शील की रक्षा करी थी।

नीलम
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Niyati Bhandari

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