Durga puja: यूं शुरू हुई विश्व प्रसिद्ध ‘दुर्गा पूजा’
punjabkesari.in Friday, Oct 04, 2024 - 02:26 PM (IST)
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Durga puja 2024: दुर्गा पूजा आज विश्व प्रसिद्ध है, यह तो सभी जानते हैं लेकिन इस उत्सव की शुरुआत कब हुई, इस बारे में बहुत कम लोगों को ही ज्ञात है। अविभाजित बंगाल में दुर्गा पूजा की शुरुआत 16वीं शताब्दी के अंत में वर्ष 1576 में हुई थी। जहां पूजा हुई वह वर्तमान में बांग्लादेश है। बांग्लादेश के ताहिरपुर में एक राजा कंस नारायण हुआ करते थे। कहा जाता है कि उन्होंने ही सर्वप्रथम अपने गांव में देवी दुर्गा की पूजा की शुरुआत की थी।
Who first started Durga Puja in world: इसके बाद कोलकाता में दुर्गा पूजा पहली बार 1610 में बड़िशा (बेहला साखेर का बाजार क्षेत्र) के राय चौधरी परिवार ने आयोजित की थी। तब कोलकाता शहर नहीं एक गांव था, जिसका नाम था कोलिकाता। इसके कुछ वर्ष बाद कोलकाता के उस इलाके में देवी दुर्गा की आराधना व पूजा की गई, जिसे आज शोभा बाजार के नाम से जाना जाता है। इतिहासविदों का मत है कि कोलकाता के शोभा बाजार राजबाड़ी में सबसे पहले आश्विन शुक्ल पक्ष को नवरात्रि पर दुर्गा पूजा आयोजित की गई। इसके बाद बांकुड़ा जिले के विष्णुपुर के प्रसिद्ध राज परिवार की दुर्गा पूजा की शुरुआत हुई। तब से साल-दर-साल दुर्गा पूजा आयोजकों की संख्या में वृद्धि होती गई।
Story of durga puja: कालक्रम में दुर्गा पूजा की भव्यता बढ़ती गई, जिसका परिणाम है कि बीते वर्ष यूनेस्को द्वारा बंगाल की दुर्गा पूजा को विश्व विरासत का दर्जा दिया गया। इतिहासविदों के अनुसार राजा कंस नारायण ने अपनी प्रजा की समृद्धि और अपने राज्य विस्तार के लिए अश्वमेध यज्ञ के बारे में सोचा और इस बात की चर्चा अपने कुल पुरोहितों से की। कहा जाता है कि अश्वमेध यज्ञ की बात सुनकर राजा कंस नारायण के पुरोहितों ने कहा कि अश्वमेध यज्ञ कलियुग में नहीं किया जा सकता। इसे भगवान राम ने सतयुग में किया था। कलियुग में अश्वमेध यज्ञ की जगह दुर्गा पूजा की जा सकती है। तब पुरोहितों ने उन्हें दुर्गा पूजा की महिमा के बारे में बताया।
Durga puja bengali: पुरोहितों ने बताया कि कलियुग में शक्ति की देवी महिषासुर मर्दिनी मां दुर्गा की पूजा करें। जो सभी को सुख-समृद्धि, ज्ञान और शक्ति प्रदान करती हैं। इसके बाद राजा ने धूमधाम से मां दुर्गा की पूजा की। तब से आज तक बंगाल में दुर्गा पूजा का सिलसिला चल पड़ा। नवरात्रि महा षष्ठी के दिन मां दुर्गा का बोध होता है। इसमें मां दुर्गा का आह्वान किया जाता है। महासप्तमी के दिन नवपत्रिका पूजा होती है। इस नवपत्रिका पूजा में धान, हल्दी का पेड़, जयंती, अशोक, अनार की डाली, बेल की डाली आदि को केले के पेड़ के साथ बांधकर पूजा की जा जाती है। उसके बाद गंगा में स्नान करवाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि नवपत्रिका पूजा मां दुर्गा के 9 रूपों की प्रकृति की शक्ति स्वरूपा पूजा है। उसके बाद महाअष्टमी व महानवमी की पूजा होती है। दशमी के दिन पारम्परिक रूप में माता दुर्गा का विसर्जन होता है।