Durga bhabhi death anniversary:  ‘आयरन लेडी’ दुर्गा भाभी से तो अंग्रेज भी खौफ खाते थे

Saturday, Oct 15, 2022 - 07:55 AM (IST)

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Durga bhabhi death anniversary: झांसी की रानी, अहिल्या बाई और कई दमदार व्यक्तित्व की महिलाओं की जाबांजी का भारतीय इतिहास गवाह रहा है। इनमें एक नाम क्रांतिकारी दुर्गावती का भी शामिल है, जिन्हें ‘दुर्गा भाभी’ के नाम से भी लोग जानते हैं। उन्हें भारत की ‘आयरन लेडी’ के नाम से भी पुकारा जाता है। स्वतंत्रता सेनानियों की हर आक्रामक योजना का हिस्सा बनीं दुर्गा भाभी बम बनातीं और अंग्रेजों से लोहा लेने जा रहे देश के सपूतों को तिलक लगाकर विजय पथ पर भेजती थीं। ब्रिटिश राज में जब लोग अंग्रेजों के सामने सिर उठाने से भी डरते थे, उस समय दुर्गा भाभी से तो अंग्रेज भी खौफ खाते थे।

 

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चंद्रशेखर आजाद ने जिस पिस्तौल से खुद को गोली मार ली थी, वह दुर्गा भाभी ने ही उन्हें दी थी। वह भगत सिंह के साथ ट्रेन यात्रा करने के लिए भी जानी जाती हैं, जब उन्होंने सॉन्डर्स की हत्या के बाद अंग्रेजों से बचने के लिए वेष बदला था। वह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य भगवती चरण वोहरा की पत्नी थीं, इसलिए अन्य सदस्य उन्हें ‘दुर्गा भाभी’ कहकर बुलाते और वह इसी नाम से मशहूर हो गईं।

दुर्गा भाभी का जन्म 7 अक्तूबर, 1907 को उत्तर प्रदेश के शहजादपुर ग्राम (अब कौशाम्बी जिला) में पंडित बांके बिहारी के यहां हुआ। इनके पिता इलाहाबाद कलैक्ट्रेट में नाजिर थे और इनके बाबा महेश प्रसाद भट्ट जालौन जिला में थानेदार के पद पर तैनात थे। 10 वर्ष की अल्प आयु में ही इनका विवाह लाहौर के भगवती चरण वोहरा के साथ हो गया। इनके ससुर शिवचरण जी रेलवे में उच्च पद पर थे। अंग्रेज सरकार ने उन्हें राय साहब का खिताब दिया था। हालांकि, उनके पुत्र भगवती चरण अंग्रेजों की दासता से देश को मुक्त कराना चाहते थे। भगवती चरण वोहरा खुलकर क्रांति में आ गए और उनकी पत्नी दुर्गा भाभी ने भी पूर्ण रूप से सहयोग किया। 1923 में भगवती चरण वोहरा ने बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की और दुर्गा भाभी ने प्रभाकर की डिग्री हासिल की।


दुर्गा भाभी का मायका व ससुराल दोनों संपन्न थे। ससुर जी ने दुर्गा भाभी को 40 हजार व पिता ने 5 हजार रुपए संकट के दिनों में काम आने के लिए दिए थे, लेकिन इस दम्पत्ति ने इनका उपयोग क्रांति के लिए किया। उनके पति ने लॉर्ड इरविन की ट्रेन पर बम फैंकने के बाद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव समेत सभी क्रांतिकारियों को छुड़ाने की योजना बनाई। इसके लिए वह लाहौर में बम का परीक्षण कर रहे थे। 28 मई, 1930 का दिन था कि अचानक बम फट गया और भगवती चरण जी शहीद हो गए। दुर्गा भाभी को बड़ा झटका लगा, लेकिन वह जल्द ही उबर गईं और देश की आजादी को ही अपने जीवन का आखिरी लक्ष्य मान लिया तथा क्रांतिकारियों के साथ सक्रिय रहीं।

विधानसभा में बम फैंकने की घटना के लिए भगत सिंह के आत्मसमर्पण के बाद दुर्गावती देवी ने लॉर्ड हैली की हत्या करने की कोशिश की। 1930 में दुर्गा भाभी ने उस पर गोली चला दी जिसमें गवर्नर तो बच गया लेकिन सैनिक अधिकारी टेलर घायल हो गया। मुंबई के पुलिस कमिश्नर को भी दुर्गा भाभी ने गोली मारी थी, जिसके परिणामस्वरूप अंग्रेज पुलिस इनके पीछे पड़ गई। मुंबई के एक फ्लैट से दुर्गा भाभी व साथी यशपाल को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें 3 साल की कैद हुई। फरारी, गिरफ्तारी व रिहाई का सिलसिला 1935 तक चलता रहा। अंत में लाहौर से जिलाबदर किए जाने के बाद गाजियाबाद में दुर्गा देवी ने चुपचाप गुमनामी और एक आम नागरिक के रूप में रहना शुरू कर दिया।


फिर अध्यापिका की नौकरी करने लगीं और कुछ समय बाद दिल्ली चली गईं और कांग्रेस में काम करने लगीं। कांग्रेस का जीवन रास न आने के कारण उन्होंने 1937 में उसे छोड़ दिया। 1939 में इन्होंने मद्रास जाकर मारिया मांटेसरी से मांटेसरी पद्धति का प्रशिक्षण लिया तथा 1940 में लखनऊ में कैंट रोड के (नजीराबाद) एक निजी मकान में केवल 5 बच्चों के साथ मांटेसरी विद्यालय खोला जो आज भी मौजूद है। बाद में गाजियाबाद चली आईं और एक आम नागरिक के रूप में दुर्गा देवी ने चुपचाप गुमनामी में रहना शुरू कर दिया। 15 अक्तूबर, 1999 के दिन गाजियाबाद के एक कमरे में उनकी मौत हो गई।

दुर्गा भाभी ने देश के लिए, उसकी आजादी के लिए अपने पति, परिवार, बच्चा और एक खुशहाल जीवन, सब कुछ दांव पर लगा दिया, लेकिन आजादी के बाद जिस तरह से उन्होंने गुमनामी की चादर ओढ़ी और खुद को बच्चों की शिक्षा तक सीमित कर लिया, वह वाकई हैरतअंगेज था। शायद यह उनके सपनों का भारत नहीं था, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना की थी।

Niyati Bhandari

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