इस बार नहीं लगेगा बिहार के राजगीर में विश्न प्रख्यात मलमास का मेला, सरकार ने लिया बड़ा फैसला

Thursday, Sep 10, 2020 - 04:21 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
जैसे कि सब जानते हैं जब से कोरोना ने देश में दस्तक दी है, तब से ही देश में धूम धाम से मनाए जाने वाले बहुत से तीज-त्यौहार प्रभावित हुए हैं। इसी बीच अब बारी आ गई बिहार के राजगीर में धूम धाम से होने वाले मलमाल के मेले की। जी हां, खबरों की मानें तो बिाहर में सरकार द्वारा कथित तौर पर ले फैसला लिया गया है। बता दें फिलहाल बिहार में चुनाव की तैयारियां जोर-शोर पर चल रही हैं। इस दौरान लोगों को मतदान के लिए जागरुक किया जा रहा है। तो वहीं कोरोना के चलते 18 सितंबर को राजगीर में होने वाले मलमास पर रोक लगा दी गई है। बताते चलें ये फैसला बिहार के कोरोना के संक्रमित लोगों की डेढ़ लाख से पार की संख्या के मद्देनज़र किया गया है। हालांकि लॉकडाउन के खत्म होते तथा अनलॉक के शुरू होने के बाद धीरे-धीरे धार्मिक स्थलों के कपाट खोले जा रहे हैं। 


आपको बता दें ये मेला हर चार साल में 1 बार पूरे 1 मास के लिए राजगीर लगता है, जो न केवल देश में बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। धार्मिक दृष्टि से देखें तो इस मेले का अधिक महत्व है। बताया जाता है जिस तरह से अर्ध कुंभ की शास्त्रों में विशेषता बताई गई है। ठीक उसी प्रकार नालंदा जिला का राजगीर मेें लगने वाला ये मेला अपने पर्यटन के लिए केवल बिहार में ही नहीं दुनिया भर में मशहूर है। कहा जाता है कि प्रत्येक वर्ष यहां लाखों की संख्या में पर्यटक जापान, श्रीलंका, चीन, थाइलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया और नेपाल जैसे देशों से आते हैं। राजगीर पर्यटकों के लिए रमणीय स्थल तो है ही, साथ ही इसकी अपनी धार्मिक महत्ता भी है, जिसे बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। 


दरअसल एक प्रचलित मान्यता है कि मलमास मेले के दौरान हिंदू धर्म के समस्त 33 कोटि देवी-देवता धरती पर इसी स्थान पर निवास करते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें पूरी दुनिया में केवल यही एक ऐसी जगह है, जहां मलमास का मेला लगता है। मगर इतने वर्षों में शायद ये पहला मौका होगा जब ये भव्य आयोजन यहां नहीं होगा। न ही यहां प्रत्येक साल की तरह यहां रौनक और चहल-पहल देखने को मिलेगी। 

मलमास क्या है ?
लगभग लोग मलमास को पुरुषोत्तम मास के नाम से जानते हैं। ज्योतिष शास्त्र की गणना के अनुसार प्रत्येक 3 साल बाद 1 माह बढ़ जाता है। सनातन धर्म में तारीखों की गणना दो विधि से की जाती है। जिसमें से प्रत्येक वर्ष सूर्य वर्ष 365 दिन और लगभग 06 घंटों का होता है तो वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का होता है। दोनों मं लगभग 11 दिनों का अंतर होता है। जो हर 3 साल में 1 माह के बराबर हो जाता है। इसी एक अतिरिक्त महीने को शास्त्रों में अधिकमास यानि मलमास का नाम दिया गया है। जिसे कुछ लोग पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं त  अंग्रेजी में इसे लीप ईयर का नाम दिया गया है। 

क्यों कहा जाता है मलमास: 
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस 1 माह में शुभ कार्य वर्जित होते हैं। जैसे शादी-विवाह और गृहप्रवेश आदि। लोक किंवदंतियां हैं कि शुरुआत में इसे मलिन माह भी कहा जाता था, जिसे बाद में मलमास कहा जाने लगा। 

क्यों कहते हैं पुरुषोत्तम मास: 
कथाओं के अनुसार जब ऋषि मुनियों ने समय की गणना की तो 1 और महीना अतिरिक्त निकला। जिसके चलते सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष में संतुलन बैठाना मुश्किल हो रहा था। कहा जाता है तब ऋषियों ने देवताओं से इस 1 महीने का स्वामी बनने का आग्रह किया। मगर कोई भी देवता इसके लिए नही मानें। जिसके बाद ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु से इस अधिक मास का भार अपने ऊपर लेने को कहा। किया। जिसके बाद भगवान विष्णु ने इसे स्वीकार कर लिया, कहा जाता है तब से ही इसे पुरुषोत्तम मास कहा जाने लगा। 


 

Jyoti

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