Dharmik Katha: द्रोणाचार्य की गुरु दक्षिणा

Friday, Mar 25, 2022 - 10:54 AM (IST)

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गुरु द्रोणाचार्य ने अपने शिष्यों को धर्मशास्त्रों के साथ-साथ धनुॢवद्या की भी शिक्षा दी। उन्होंने देखा कि सभी शिष्यों में अर्जुन अधिक मेधावी तथा सेवा भावी है। उन्होंने अर्जुन को गुरुकुल से विदा करते समय एक दिव्य अस्त्र प्रदान किया जिसमें समूची पृथ्वी को जला डालने की अनूठी क्षमता थी। गुरु द्रोण ने अस्त्र प्रदान करने के बाद कहा, ‘‘वत्स अर्जुन इस अस्त्र का प्रयोग बहुत सोच-समझ कर तथा अंतिम अस्त्र के रूप में ही करना, वर्ना तुम भीषण नरसंहार व विध्वंस के पाप के भागी हो जाओगे।’’ 

अर्जुन ने नतमस्तक होकर उनके आदेश का पालन करने का आश्वासन दिया। गुरु द्रोणाचार्य ने कहा, ‘‘अब मुझे दक्षिणा चाहिए।’’                                                                                                                                                                  
अर्जुन ने विनीत होकर कहा, ‘‘गुरुदेव, आप जो भी मांगेंगे मैं उसे देने के लिए इसी समय तैयार हूं।’’ 

द्रोण ने कहा, ‘‘मुझे वचन दो कि यदि मैं भी किन्हीं परिस्थितियों के वशीभूत होकर धर्मपक्ष के विरुद्ध रणक्षेत्र में खड़ा दिखाई दूं तो तुम मेरा भी डटकर मुकाबला करने को तैयार रहोगे। उस समय मुझे गुरु  के रूप में न देखकर अधर्म पक्ष का मानकर मुझ पर प्रहार करने में कोई कसर नहीं रखोगे। यही मेरी गुरु दक्षिणा है।’’

अर्जुन अपने गुरु के वचन  सुनकर हत्प्रभ रह गए और उनसे कुछ कहते न बना।
 

Jyoti

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