SAWAN 2019 : त्रिशूल से जुड़े ये दिलचस्प किस्से नहीं जानते होंगे आप
Saturday, Jul 13, 2019 - 05:34 PM (IST)
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“भोलेनाथ” हिंदू धर्म के लोगों के लिए ये एक ऐसा नाम है जिसे सुनते ही उनके मन में एक अद्भुत मोह पैदा हो जाता है। अब हो भी क्यों न भगवान शंकर का रूप है ही निराला। शास्त्रों में उल्लेखित इनके स्वरूप का वर्णन ऐसे किया गया है इसे पढ़ने-सुनने से ही मन में इनकी बहुत सुंदर छवि बन जाती है। जिसमें इनका मनमोहक चेहरा, सिर पर सुशोभित चांद, गले में नाग देवता, एक हाथ में डमरू, दूसरे में त्रिशूल विराजित हैं।आप में से बहुत से लोग होंगे जिन्हें शिव जी के इन सभी चीज़ों से संबंधित जानकारी नहीं होगी।
तो आइए आज हम जानते हैं त्रिशूल से जुड़ी कुछ खास बातें।
ज्योतिष शास्त्र में त्रिशूल को भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है। कहते हैं कि बिना त्रिशूल के शिव जी का कल्पना भी नहीं की जा सकती है। माना जाता है कि त्रिशूल में लगे तीनों फलक सतगुण, रजोगुण और तमोगुण के प्रतीक हैं। हिंदू धर्म के 4 वेदों में सबसे महत्वपूर्ण वेद आयुर्वेद में भी त्रिशूल की व्याख्या की गई है। इसके मुताबिक ये तीन फलक वात, पित्त और कफ को दर्शाते हैं। मालूम हो कि शिव ने कैलाश पर्वत को अपना निवास स्थान बनाया था। कहा जाता है कि शिव जी जंगली जानवरों से बचने और ऊंचे पर्वतों पर चढ़ने के लिए त्रिशूल का प्रयोग करते थे। इसके अलावा असुरों का संहार करने के लिए भी शिव ने त्रिशूल का प्रयोग किया।
त्रिशूल को शिव का अहम शस्त्र भी कहा गया है। माना जाता है कि त्रिशूल की महिमा चीन तक फैली हुई है और त्रिशूल में आस्था रखने वाले लोग दुनिया के कई कोनों में फैले हुए हैं। त्रिशूल की पूजा को शिव की पूजा माना गया है। ज्योतिष शास्त्र में कहा गया है कि अगर कोई पूरी विधि-विधान से त्रिशूल की पूजा करता है तो भोलेनाथ उस पर बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। इसके साथ ही ये भी माना जाता है कि अगर इसका दान किया तो व्यक्ति के जीवन के सारे कष्ट समाप्त होते हैं।
जैसे कि सबको पता होगा कि त्रिशूल के अलावा शिव शंकर डमरू भी धारण किए हुए हैं। शास्त्रों में कहा गया कि शिव अपने डमरू का उपयोग अपनी उपस्थिति का अहसास करवाने के लिए करते हैं।
इसके अलावा वास्तु शास्त्र के अनुसार भगवान शिव के अस्त्र त्रिशूल को घर में स्थापित करने से बुरी शक्तियों का नाश होता है। बता दें कुछ मान्यताओं के अनुसार सावन में बहुत से लोग घर में त्रिशूल स्थापित कर उसकी विधि-वत पूजा करते हैं।