चाहे सुख हो या दुख ये करना न भूलें

Friday, Mar 01, 2019 - 10:41 AM (IST)

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महाभारत हिंदू धर्म का ऐसा प्रमुख ग्रंथ हैं जिससे हमें बहुत सी बातों के बारे में जानने को मिलता है, जोकि हमारे जीवन से जुड़ी हुई होती हैं। महाभारत से ही हमें गीता का ज्ञान प्राप्त हुआ था। हर किसी के जीवन में दुख और सुख दोनों का आगमन होता ही रहता है, क्योंकि यही हमारे जीवने के दो पहलु माने गए हैं। महाभारत के भीष्म पर्व में श्री कृष्ण ने बताया है कि मनुष्य को सुख और दुख आने पर क्या करना चाहिए। भगवान कृष्ण के अनुसार सुख के समय में कुछ खास व्यवहार करना चाहिए। सुख के समय कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। कई बार सुख और दुख में व्यक्ति अपने मन को काबू में नहीं रख पाते हैं और जिससे कि वे खुद का ही नुकसान करवा बैठता है। तभी कहा गया है कि व्यक्ति को दोनों स्थितियों में समझदारी से ही काम लेना चाहिए। तो आइए जानते हैं महाभारत के अनुसार दोनों स्थितियों में व्यक्ति को कैसा व्यवहार रखना चाहिए। 

श्लोकः
न प्रह्दष्येत प्रियं प्राप्त नोद्विजेत् प्राप्य चाप्रियम्।
स्थिरबुद्धिरसम्मूढो ब्रह्मविद् ब्रह्मणि स्थितः।।

सुख की स्थिति
इस श्लोक में बताया गया है कि जब व्यक्ति बहुत खुश होता है तो उसका अपने आप पर कोई वश नहीं रहता। वह अपने मन को कभी काबू में नहीं रख पाता। कई बार व्यक्ति खुशी से ऐसी बहुत सी बातें और वादे कर देता है जो बाद में पूरे कर पाना उसके लिए मुश्किल होते हैं और फिर जिसका परिणाम उसे भुगतना ही पड़ता है। इसलिए कहा गया है कि अच्छे समय में व्यक्ति को अपने मन पर काबू रखना चाहिए और हर काम को सोच-समझ कर ही करना चाहिए। 

दुख की स्थिति
जैसा कि शास्त्रों में बताया गया है कि जीवन के दो पहलू दुख और सुख। व्यक्ति को दोनों परिस्थितियों में संभलकर काम लेना चाहिए। लेकिन कई बार व्यक्ति अपने दुख के समय में अपना धैर्य खो बैठता है और अपने हर कार्य को पूरा करने के लिए गलत रास्ते का इस्तेमाल भी करता है। महाभारत के अनुसार व्यक्ति हर रूप में धैर्य से काम लेना चाहिए। दुख और परेशानी में हमें मन को वश में रखकर सूझ-बूझ के साथ काम करना चाहिए। 
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Lata

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