Diwali: ये हैं वो महान विभूतियां, जिन्हें किया जाता है दिवाली के दिन याद

Sunday, Nov 12, 2023 - 10:36 AM (IST)

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Mahavir Swami महावीर स्वामी: जैन धर्म के प्रवर्तक श्री महावीर स्वामी वैशाली के राज परिवार में जन्मे थे। बचपन में उनको वर्धमान नाम से पुकारा जाता था। अकूत धन-संपत्ति होने के बावजूद वर्धमान का भौतिक सुखों में जी नहीं लगा इसलिए 30 वर्ष की उम्र में उन्होंने आत्मज्ञान की लालसा में घर छोड़ दिया। अविराम 12 वर्ष तक भ्रमण करने पर उन्हें आत्मबोध की प्राप्ति हुई। महावीर के सिद्धांतों की प्रासंगिकता सार्वकालिक है। बिहार की पावापुरी में उन्हें 72 वर्ष की आयु में निर्वाण प्राप्त हुआ।

Lord Buddha भगवान बुद्ध: बौद्ध धर्म के प्रवर्तक भगवान गौतम बुद्ध का बचपन का नाम सिद्धार्थ था। बौद्ध धर्म के समर्थकों व अनुयायियों ने 2500 वर्ष पूर्व लाखों दीपक जला कर दीपावली के दिन उनका स्वागत किया था। आज भी बौद्ध धर्म के अनुयायी दीपावली के दिन अपने स्तूपों पर अनगिनत दीपक प्रज्ज्वलित करके भगवान बुद्ध का स्मरण करते हैं।

Swami Dayanand Saraswati स्वामी दयानंद सरस्वती: आर्य समाज के संस्थापक और ‘सत्यार्थ प्रकाश’ महाग्रंथ के रचयिता स्वामी दयानंद सरस्वती गुजरात के निवासी थे। जिज्ञासु प्रवृत्ति होने के कारण स्वामी जी ने छोटी उम्र में ही घर का परित्याग कर संसार को अलग दृष्टि से देखा। बहुत घूमने-फिरने के बाद मथुरा के स्वामी विरजानंद से उनका संपर्क हुआ तथा उन्हें स्वामी विरजानंद से ही ज्ञान का मूल मंत्र मिला। स्वामी दयानंद के समय में हिन्दू धर्म में अनेक सामाजिक कुरीतियां, अंधविश्वास और आडम्बर पनप रहे थे। उन्होंने इन कुरीतियों से आम जनमानस को सचेत किया और वैदिक संस्कृति का पक्ष लिया।

Swami Ramtirtha स्वामी रामतीर्थ: राष्ट्रवाद की आवाज बुलंद करने और समाज में जागृति लाने वाला यह महापुरुष दीपावली के दिन हमसे सदा-सदा के लिए बिछुड़ गया। स्वामी रामतीर्थ को वेदों के प्रकांड ज्ञाता और विद्वान के रूप में जाना जाता है। सिर्फ 22 वर्ष की उम्र में गणित विषय के साथ एम.ए. परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने वाले स्वामी रामतीर्थ का जन्म पंजाब में हुआ था।

स्वामी जी का बाल्य जीवन अत्यंत अभावों में बीता। अध्ययन के पश्चात् उन्होंने कालेज में अध्यापन का कार्य किया और घर-गृहस्थी भी बसाई लेकिन जब इनमें मन नहीं लगा तो संन्यासी बन गए। मात्र 33 वर्ष की आयु में उन्होंने भागीरथी (गंगा) नदी में जल समाधि ले ली। सिखों के छठे गुरु हरगोबिंद साहब जी, जो ग्वालियर के किले में कैद थे ने इसी दिनस्वयं को तथा भारत के 52 राजाओं को मुगल शासक जहांगीर के कारागार से मुक्त करवाया था। इसी दिन से इनके नाम के साथ एक नाम और ‘बंदी छोड़’ जुड़ गया। गुरु  जी ने बिना भेदभाव के सभी कैदियों को छुड़वाया। गुरु जी के अमृतसर पहुंचने की खुशी में बाबा बुड्ढा जी ने दीपमाला की थी।

Guru Hargobind Saheb Ji गुरु हरगोबिंद साहब जी: इसके बाद गुरु हरगोबिन्द साहिब ने मीरी-पीरी नाम से दो तलवारें रख कर सिखों में संत के साथ-साथ सिपाही होने की परम्परा भी शुरू की। स्वर्ण मंदिर का निर्माण कार्य भी इसी दिन शुरू किया गया था। अमृतसर की दीपावली इसी कारण प्रसिद्ध है।

Lord Vishwakarma भगवान विश्वकर्मा: स्वामी शंकराचार्य का निर्जीव शरीर जब चिता पर रख दिया गया था, तब सहसा उनके शरीर में इसी दिन पुन: प्राणों का संचार हुआ था। शिल्पकला के अधिदेवता भगवान विश्वकर्मा की पूजा दीपावली के दूसरे दिन शिल्पी वर्ग करता है। देवताओं के समस्त विमान आदि तथा अस्त्र-शस्त्र इन्हीं के द्वारा निर्मित हैं। लंका की स्वर्णपुरी, द्वारिका-धाम, भगवान जगन्नाथ का श्री विग्रह इन्होंने ही बनाया। इनका एक नाम त्वष्टा है। सूर्य पत्नी संज्ञा इन्हीं की पुत्री हैं। इनके पुत्र विश्वरूप और वृत्र हुए। सर्वमेघ के द्वारा इन्होंने जगत की सृष्टि की और आत्मबलिदान करके निर्माण कार्य पूर्ण किया। भगवान श्री राम के लिए सेतु निर्माण करने वाले वानर राज नल इन्हीं के अंश से उत्पन्न हुए थे। हिन्दू शिल्पी अपने कर्म की उन्नति के लिए इनकी आराधना करते हैं।

Prachi Sharma

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