नक्षत्रों की अदला-बदली से हो सकते हैं आप गंभीर रोगों के शिकार

Thursday, Dec 12, 2019 - 01:18 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
ज्योतिष शास्त्र में जितना ग्रहों को महत्व दिया जाता है उतना ही इसमे नक्षत्रों को भी खास माना जाता है। तो वहीं हिंदू धर्म में पुराण में हर ग्रह नक्षत्र का संबंध देवी-देवताओं से बताया जाता है। बता दें ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुल 9 ग्रह और तथा 27 नक्षत्र। इनके अलावा एक 28वां अभिजित नक्षत्र का भी वर्णन कुछ शास्त्रों में किया गया है। जिसका विस्तारपूर्वक वर्णन उत्तराषाढ़ा के बाद तथा श्रवण नक्षत्र से पहले किया गया है। अगर ग्रंथों आदि के अनुसार ग्रह तथा सभी नक्षत्र हमारे जीवन पर किसी न किसी तरीके से अपना प्रभाव डालते हैं। आज हम अपने इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको इसी से जुड़ी जानकारी प्रदान करने वाले हैं। जिसमें हम आपको बताएंगे कि नक्षत्रों से फेरबदल यानि अदला-बदली से कैसे जातक गंभीर रोगों का शिकार हो सकता है। परंतु इससे पहले बता दें ज्योतिष में सामान्यत या अभिजित नक्षत्र का स्थान नहीं है तथा स्वास्थ्य संबंधी विषय में भी इस नक्षत्र की भूमिका पर कोई खास ज़ोर नहीं दिया गया है। कहने का भाव ये है कि इसमें केवल मुख्य 27 नक्षत्रों को ही महत्व दिया गया है।

तो आइए जानते हैं नक्षत्रों का रोगों से क्या संबंध है और कौन से नक्षत्र के अशुभ प्रभाव से किस प्रकार का रोग आरंभ हो जाता है-
अश्विनी- कहा जाता है नक्षत्र अर्द्धाग्वात, अनिद्रा एवं मतिभ्रम आदि रोगों को देने वाला होता है। ऐसा माना जाता है अगर इस नक्षत्र में कोई बीमारी होती है तो वह एक दिन, नौ दिन अथवा पच्चीस दिन तक रहती है।

भरणी- इस नक्षत्र में तीव्र ज्वर, वेदना अर्थात दर्द एवं शिथिलता या मूर्च्छा होती है। माना जाता है जिस जातक को इस नक्षत्र में कोई बीमारी आरंभ होती है तो वह कम से कम 11, 21 अथवा 30 दिन तक चलती है। इसके साथ ही ये भी कहा जाता है अगर व्यक्ति विशेष की दशा/अन्तर्दशा भी खराब हो तो इस नक्षत्र में आरंभ हुई बीमारी मृत्य तक बनी रहती है।

कृत्तिका- इस नक्षत्र में उदर शूल, तीव्र वेदना, अनिद्रा तथा नेत्र रोग आदि होने के अधिक चॉन्स होते हैं। अगर इस नक्षत्र में रोग शुरू होता है तो वह 9, 10 अथवा 21 दिन तक रहता है ।

रोहिणी-  रोहिणी नक्षत्र सिरदर्द, उन्माद, प्रलाप तथा कुक्षिशूल प्रदान करता है और इस नक्षत्र में आरंभ हुआ रोग 3/7/9 अथवा 10 दिन तक बना रहता है।

मृगशिरा- इस नक्षत्र में त्रिदोष, चर्मरोग(त्वचा रोग), तथा एलर्जी आदि बीमारी होती हैं। जो इस नक्षत्र के दौरान 3/5/9 दिन तक बनी रहती है।

आर्द्रा- नक्षत्र वायु विकार इस नक्षत्र के दौरान  स्नायुविकार तथा कफ संबंधित रोग भी होने की संभवना रहती है। कहा जाता है इस नक्षत्र में शुरू हुआ रोग 10 दिन अथवा एक माह तक बना रहता है। कुछ हालातों में ये नक्षत्र मृत्यु का भी कारण बनता है। परंतु इसके लिए कुंडली के अन्य योगों को भी जांचना पड़ता है।

पुनर्वसु- पुनर्वसु नक्षत्र के दौरान कमर दर्द, सिरदर्द अथवा गुर्दे आदि के रोग हो सकते हैं। जो लगभग 7 अथवा 9 दिन तक जातक को परेशान करते हैं।  

पुष्य- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ये नक्षत्र तेज़ बुखार देता है। इसके अलावा इस नक्षत्र के चलते दर्द तथा अचानक पीड़ादायक रोग भी हो जाते हैं। इसमें प्रारंभ हुई बीमारी लगभग 7 दिनों तक चलती है।

आश्लेषा- यह नक्षत्र सर्वांगपीड़ा देने वाला माना जाता है। बीमारी कोई भी हो मृत्यु तुल्य कष्ट देने वाली होती है। यह नक्षत्र विष रोग, सर्पदंश आदि से संबंधित माना जाता है। इस नक्षत्र में अगर स्वास्थ्य विकार होते हैं तो वह 9/20/30 दिनों तक बने रहते हैं। कई बीमारी मृत्यु तुल्य भी सिद्ध हो सकती है।

मघा- इस दौरान वायु विकार, उदर विकार तथा मुंह के रोगों से संबंध रखता है। इस नक्षत्र में प्रारंभ हुआ रोग 20 दिन/30दिन अथवा 45 दिन तक बना रहता है और आने वाले समय में रोग की पुनरावृत्ति भी हो जाती है अर्थात दोबारा भी रोग हो सकता है।

पूर्वाफाल्गुनी- पूर्वाफाल्गुनी में कर्ण रोग (कान की बीमारी), शिरोरोग, ज्वर तथा वेदना होती है। इसमें बीमारी लगभग 8/15/30 दिनों तक रहती है और कभी-कभी बीमारी बढ़कर एक साल तक भी तंग करती है।

उत्तराफाल्गुनी- ज्योतिष शास्त्र में इस नक्षत्र के बारे में कहा गया है कि इसके अशुभ प्रभाव से जातक को पित्तज्वर, अस्थिभंग तथा सर्वांगपीड़ा के गुज़रना पड़ता है। इस दौरान पीछे पड़ी बीमारी 7/15 अथवा 27 दिन तक बनी रहती है।

हस्त- इस नक्षत्र में उदर शूल, मंदाग्नि और पेट से संबंधित जैसे कई विकारों से संबंध रखता है। अगर इस नक्षत्र में कोई रोग हो जाए तो वो लगभग 7/8/9 या 15 दिनों तक रहता है।

चित्रा- कहा जाता है चित्रा नक्षत्र का संबंध अत्यन्त कष्टदायक अथवा दुर्घटना जन्य पीड़ाओं से माना गया है। अगर इस नक्षत्र में रोग होता है तो वह 8/11 अथवा 15 दिन तक रहता है।

स्वाति- स्वाति नक्षत्र उन जटिल रोगों से संबंध रखता है जिनका शीघ्रता से उपचार नहीं होता। इसमें हुई बीमारी 1/2/5 अथवा 10 महीने तक साथ बनी रहती है।

विशाखा- विशाखा नक्षत्र वात व्याधा यानि (वायु रोग) से संबंधित रोग देता है साथ ही इस दौरान कुक्षिशूल, सर्वांगपीड़ा आदि से जुड़े रोग भी होते हैं। अगर इस नक्षत्र में कोई बीमारी होती है तो वह 8/10/20 अथवा 30 दिनों तक रहती है।

अनुराधा- इस नक्षत्र में कोई बड़ी बीमारी नहीं होती परंतु इस नक्षत्र में तेज़ बुखार, सिरदर्द तथा संक्रामक रोग कभी कभी ज्यादा समय के लिए परेशान कर देते हैं। इस नक्षत्र में होने वाला रोग 6/10 अथवा 28 दिन तक बना रहता है।

ज्येष्ठा- ज्येष्ठा नक्षत्र में कंपन, विकलता तथा वक्ष संबंधी रोग होते हैं। बीमारी होने पर वह 15, 21 या 30 दिन तक चलती है। कभी-कभी ये रोग मृत्यु का कारण भी बन जाते हैं।

मूल- यह नक्षत्र उदर रोग, मुख रोग तथा नेत्र रोगों से संबंधित है, इस नक्षत्र में रोग होने पर वह 9/15 या  20 दिन तक रहता है।

पूर्वाषाढ़ा- ज्योतिष शास्त्र मे किए वनर्णन के अनुसार ज्योतिष विशेषज्ञों का मानना है कि ये नक्षत्र प्रमेह, धातुक्षय, दुर्बलता तथा कुछ गुप्त रोगों से संबंध रखता है। इसमें उत्पन्न हुआ रोग 15 से 20 दिन बना रह सकता है और अगर इतने समय में रोग ठीक नहीं होता तो वह 2, 3 या कभी-कभी 6 महीने तक बना रहता है। इस नक्षत्र में पैदा हुई बीमारी कोई भी हो दोबारा भी हो सकती है।

उत्तराषाढ़ा- इस दौरान उदर से जुड़े, कटिशूल और शरीर को कुछ अन्य दर्द देने वाले रोग होते हैं, जो 20 से 45 दिन तक व्यक्ति को परेशान करते हैं।

श्रवण- श्रवण नक्षत्र में अतिसार यानि Diarrhea, विषूचिका यानि toxicology, मूत्रकृच्छु यानि urine तथा संग्रहणी से संबंध रखता है। इसमें पैदा हुए रोग 3/6/10 या 25 दिन तक रहते हैं।

धनिष्ठा- इस नक्षत्र में आमाशय, बस्ती तथा गुर्दे के रोग होने की अधिक संभावना रहती हैं। इस नक्षत्र में पैदा हुआ रोग 13 दिन तक रहता है।

शतभिषा- शतभिषा में ज्वर, सन्निपात तथा विषम ज्वर हो सकने के चॉन्स होते हैं। इसमें पैदा हुआ रोग अथवा 40 दिन तक रहता है।

पूर्वाभाद्रपद- इसमें वमन, घबराहट, शूल तथा मानसिक रोग अधिक परेशान कर सकते हैं। इस नक्षत्र में पैदा हुए रोग 2 से 10 दिन तक रहते हैं या 3 महीने तक भी परेशान करते हैं।

उत्तराभाद्रपद- आख़िरी नक्षत्र यानि उत्तराभाद्रपद के दौरान दांतों के रोग, वात रोग तथा ज्वर से संबंधित रोग होते हैं। इस नक्षत्र में पैदा हुई बीमारी कम से कम 45  दिन तक परेशान करती है।

Jyoti

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