कवि धनपाल की महत्वपूर्ण रचना "तिलक मंजरी"

punjabkesari.in Tuesday, Sep 06, 2022 - 04:16 PM (IST)

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एक बार कवि धनपाल राजा भोज को अपना कथा ग्रंथ सुना रहे थे। जब धनपाल पूरी कथा सुना चुके तो राजा भोज बोले, ‘‘कथा में विनता का जो वर्णन आया है उसे हटाकर अवन्ति तथा शुक्रावतार तीर्थ को बदलकर महाकाल नाम दे दें तो यह कथा हमारे राज्य और सीधे हमसे जुड़ सकती है। इसके बदले आप जो भी पुरस्कार चाहें, हम देंगे।’’

राजा भोज की बात सुनकर कवि धनपाल बोले, ‘‘महाराज! धन के लिए ग्रंथ में परिवर्तन करना मेरे लिए संभव नहीं है। यह मेरी आत्मा को कभी भी स्वीकार्य नहीं होगा। मैं मन से लिखता हूं। लिखते समय मेरे मन में पैसे की लालसा जरा भी नहीं रहती।’’ 

यह जवाब सुनकर राजा भोज को क्रोध आ गया। देखते-देखते धनपाल का वह नवीन ग्रंथ भोज ने आग में डाल दिया। कुछ ही देर में वह ग्रंथ जलकर राख बन गया।

इसके बाद धनपाल दुखी मन से घर लौटे और उदास होकर एक ही स्थान पर बैठे रहे। धनपाल की बेटी तिलक मंजरी से पिता की उदासी छिप नहीं पाई। उसने अपने पिता को इतना हताश और उदास कभी नहीं देखा था। 

उसने पूछा, ‘‘क्या हो गया? ग्रंथ कहां है?’’ 

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धनपाल ने दुखी मन से पूरी घटना तिलक मंजरी को सुना दी। पूरी बात सुनने के बाद तिलक मंजरी बोली, ‘‘पिता जी, उदास मत होइए न ही चिंता कीजिए। 

मैंने पूरा ग्रंथ पढ़ा था, मुझे ग्रंथ की कथा स्मरण है। मैं उसे दोहराती जाऊंगी और आप उसे लिखते जाइएगा।’’ 

बेटी की बात सुनकर धनपाल का चेहरा चमक गया। उन्होंने बेटी के सहयोग से अपना ग्रंथ नए सिरे से लिखना शुरू कर दिया। 

कुछ ही दिनों में वह पूरा हो गया। इस ग्रंथ का नाम उन्होंने अपनी बेटी के नाम पर ‘तिलक मंजरी’ रखा। यह ग्रंथ आज भी कवि धनपाल की महत्वपूर्ण रचनाओं में से एक माना जाता है।
 


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Content Writer

Jyoti

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