आप भी जानें भगवान की उपासना का ये अनूठा तरीका

Tuesday, Nov 03, 2020 - 02:32 PM (IST)

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स्वामी रामतीर्थ पानी के जहाज से जापान जा रहे थे। उनके साथ एक वृद्ध अमरीकी भी यात्रा कर रहा था। स्वामी जी का उससे घनिष्ठ परिचय हो गया। स्वामी जी ने देखा कि वह कई-कई घंटे तक रूसी भाषा सीखने का अभ्यास करता रहता है।

स्वामी जी ने वृद्ध से कहा, ‘‘आप भूगर्भ शास्त्र के प्रोफैसर रहे हैं, 70 वर्ष की आयु हो चुकी है। आप 11 भाषाओं के ज्ञाता हैं। अब आपके जीवन का सांध्यकाल है। भगवद् ङ्क्षचतन करने की जगह 12वीं भाषा सीख कर समय व्यर्थ क्यों कर रहे हैं?’’

अमरीकी ने उत्तर दिया, ‘‘स्वामी जी, हाल ही में रूसी भाषा में भूगर्भ शास्त्र का एक अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ प्रकाशित हुआ है। मेरी अभिलाषा है कि उसका अंग्रेजी भाषा में अनुवाद कर उसे अपने देश के छात्रों को उपलब्ध कराऊं। इस ज्ञान से मेरे राष्ट्र को भी लाभ पहुंचेगा, इसलिए रूसी भाषा सीख रहा हूं।’’

कुछ क्षण रुककर अमरीकी वृद्ध ने कहा, ‘‘स्वामी जी, जहां तक भगवद् ङ्क्षचतन और उपासना का प्रश्र है, मैंने गीता से यह प्रेरणा ली है कि ज्ञान की साधना तथा अपने राष्ट्र का हित चिंतन भगवान की उपासना का ही एक रूप है। मैं इसी साधना को भगवान की उपासना मानता हूं।’’ 

स्वामी रामतीर्थ उस अमरीकन के मुख से भगवान की उपासना की अनूठी व्याख्या सुनकर गद्गद् हो उठे। —शिव कुमार गोयल

Jyoti

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