Dharmik Concept: संकुचित मानसिकता त्यागें

Wednesday, Oct 19, 2022 - 11:12 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
परोपकार के समान कोई दूसरा धर्म नहीं है, मनुष्य का जन्म बड़े भाग्य से प्राप्त होता है, हमारे जन्म का उद्देश्य क्या है? इस प्रश्र का उत्तर हमें ही खोजना है। एक बार की बात है कि कुछ लोगों का जत्था एक अंधेरी सुरंग से गुजर रहा था, सभी के पैरों में वहां बिछे हुए नुकीले कंकड़ चुभ रहे थे, कोई चिढ़ रहा था, कोई कराह रहा था। केवल कुछ लोगों के मन में विचार आया कि कुछ ऐसा करना चाहिए कि हमारे पीछे आने वाले लोगों के पैरों में ये नुकीले कंकड़ न चुभें। जिन लोगों के मन में यह विचार आया, वे कंकड़ उठाकर अपनी जेबों में भरने लगे। कंकड़ भरने से जेबें भारी हो जाएंगी, इस डर से कई लोगों ने थोड़ी देर बाद कंकड़ भरने बंद कर दिए।

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इक्का-दुक्का लोगों ने ही परोपकार का अपना यह कार्य जारी रखा। लम्बा रास्ता तय करने के बाद आखिर वह सुरंग खत्म हुई। जिन लोगों ने अपनी जेबों में कंकड़ भर रखे थे, उन्हें खाली करने लगे, लेकिन यह क्या...? जेबों से कंकड़ के बजाय चमचमाते हुए हीरे निकलने लगे। 

बिना किसी फल की आशा किए हुए केवल दूसरों का मार्ग सुलभ करने की दृष्टि से जिन्होंने यह सोचा कि जो कष्ट उन्हें उठाना पड़ा वह दूसरों को न उठाना पड़े, उन्हें जेबें भर हीरे मिले।  ‘स्व’ की संकुचित मानसिकता त्याग कर ‘पर’ के लिए सर्वस्व बलिदान करना ही सच्ची मानवता है। यही पुण्य है। क्या आपने कभी ऐसा विचार किया है? नहीं किया हो तो जरूर करें।

Jyoti

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