धार्मिक शास्त्रों में अंगदान को बताया गया है 'महादान'

Tuesday, Jan 11, 2022 - 06:47 PM (IST)

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परोपकार की पुनीत भावना ‘दान’ बनकर, अनंतकाल से हमारी शिराओं में प्रवाहित होती आई है। श्रेष्ठ मूल्यों के परिचायक परमार्थ कार्य धनदान, विद्यादान, अन्नदान आदि अपने विविध रूपों सहित उद्धृत होते रहे हैं। आज के संदर्भ में ‘दान’ की व्यापकता पर दृष्टिपात करें तो शल्य चिकित्सा में मिल रही अभूतपूर्व सफलताओं ने ‘अंगदान’ को सर्वश्रेष्ठ दान की श्रेणी में ला खड़ा किया है।

‘अंगदान’ से अभिप्राय किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति के शरीर के किसी अंग को शल्यक्रिया द्वारा किसी अन्य व्यक्ति में प्रतिरोपित करना है। प्रदाता के आधार पर इसे तीन भागों में विभक्त कर सकते हैं :

जीवित दान : जब एक जीवित व्यक्ति लाभाकांक्षी को प्रत्यारोपण हेतु अपेक्षित अंग का पूर्ण अथवा आंशिक दान करे। यहां दाता कोई पारिवारिक सदस्य हो सकता है।

मृतक अंगदान : जब किसी दिवंगत परमार्थी के अंग, रोगी को प्रतिरोपित किए जाएं। इसके लिए रोगी को प्रत्यारोपण संबद्ध संस्थान में पंजीकरण कराना आवश्यक है।

‘मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम-1994’  भारत में अंगदान की अनुमति सहित ‘मस्तिष्क मृत्यु’ की अवधारणा वैध बनाता है। प्राकृतिक मृत्यु मामले में काॢनया, हृदय वॉल्व, त्वचा, अस्थि जैसे ऊतकों का दान किया जा सकता है लेकिन हृदय, यकृत, गुर्दे, आंत, फेफड़े, अग्नाशय आदि महत्वपूर्ण अंग ‘मस्तिष्क मृत्यु’ मामले में ही दान किए जा सकते हैं।

जीवित अंगदान में कुछ अंगों का आंशिक दान हो सकता है किन्तु देह, आंखों, हृदय आदि अधिकतर अंगों का पूर्णदान मृत्योपरांत ही संभव है। वर्ष 2011 को अधिनियम में संशोधनोपरांत, संबंधित नियम 2014 में अधिसूचित किए गए। प्रत्यारोपण की 8 अंगीय सूची में हाथ व चेहरा भी सम्मिलित हो गए। चिकित्सीय उद्देश्य सहित इसका ध्येय ‘मानव अंग तस्करी’ जैसे अवैध धंधों में ‘अंगदान’ का दुरुपयोग रोकना भी रहा।

किसी भी वय, जाति, धर्म अथवा समुदाय का व्यक्ति आनलाइन/ आफलाइन शपथपत्र भरकर स्वयं को ‘अंगदान’ हेतु पंजीकृत करवा सकता है, बशर्ते वह कैंसर, एच.आई.वी. जैसी संचारित व्याधि से ग्रस्त न हो। 18 वर्ष से कम आयु होने पर अभिभावकों को सहमति आवश्यक है।

पंजीकरण उपरांत, अंगदाता को सभी मान्यता प्राप्त अंग तथा ऊतक प्रत्यारोपण संगठनों के अंतर्गत पंजीकृत ‘यूनीक गवर्मैंट रजिस्ट्रेशन नंबर’ वाला दाता कार्ड उपलब्ध करवाया जाता है, जिसका ‘अंगदान’ के समय होना अनिवार्य है। मृत मस्तिष्क वाले व्यक्ति का ‘अंगदान’, निकटस्थ रक्त संबंधी, कानूनी नियमानुसार ही कर सकता है।

देश में तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, केरल, दिल्ली एन.सी.आर., पंजाब ‘अंगदान अग्रणी’ राज्य हैं। ‘अंगदान’ के प्रतिमान स्थापित करतीं, जागरूकता की कुछ लहरें अवश्य दृष्टिगोचर हो रही हैं। गुजरात में खेलते समय घर की दूसरी मंजिल से गिरने वाले अढ़ाई वर्षीय मासूम का मस्तिष्क मृत घोषित होने पर शोकाकुल परिजनों ने तत्काल ‘अंगदान’ का निर्णय लेते हुए 7 मरणासन्न बच्चों को नवजीवन प्रदान किया। इंदौर के 41 वर्षीय किसान खुमसिंह सोलंकी के ‘मरणोपरांत अंगदान’ से उपलब्ध दिल मुम्बई की एक पांच वर्षीय बच्ची के शरीर में प्रतिरोपित किया गया।
जीवन की सार्थकता सिद्ध करते ये प्रकरण निश्चय ही अनुकरणीय है किन्तु मांग व उपलब्धता में भारी अंतर पाटने की संकल्पसिद्धि अभी बाकी है। भारत में प्रतिवर्ष लगभग 5 लाख लोग अंगों की अनुपलब्धता के चलते असमय काल कलवित हो जाते हैं। लगभग 2 लाख लोग लिवर और 50 हजार गुर्दा प्रत्यारोपण हेतु प्रतीक्षारत हैं। —दीपिका अरोड़ा
 

Jyoti

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