धार्मिक प्रसंग: दान-पुण्य के साथ साथ भगवान का भजन करना भी जरूरी

Tuesday, Apr 06, 2021 - 01:27 PM (IST)

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एक बहुत धनी व्यापारी था। उसने बहुत धन-सम्पत्ति इकट्ठा कर रखी थी। उसका एक नौकर था संभु जो अपने वेतन का एक बड़ा हिस्सा गरीबों की मदद में खर्च कर देता था। व्यापारी रोज उसे धन बचाने की शिक्षा देता लेकिन संभु पर कोई असर नहीं होता था।

इससे तंग आकर एक दिन व्यापारी ने संभु को एक डंडा दिया और कहा कि जब तुझे अपने से भी बड़ा कोई मूर्ख मिले तो इसे उसको दे देना। इसके बाद व्यापारी अक्सर उससे पूछता कि कोई तुझसे बड़ा मूर्ख मिला। संभु विनम्रता से इंकार कर देता। एक दिन व्यापारी बीमार हो गया। रोग इतना बढ़ा कि वह मरणासन्न हो गया।

अंतिम समय उसने संभु को अपने पास बुलाया और कहा कि अब मैं इस संसार को छोड़कर जाने वाला हूं। संभु ने कहा, ‘‘मालिक मुझे भी अपने साथ ले चलिए।’’ व्यापारी ने प्यार से डांटते हुए कहा, ‘‘वहां कोई किसी के साथ नहीं जाता।’’

संभु ने फिर कहा, ‘‘फिर तो आप धन-दौलत, सुख-सुविधा के सामान जरूर ले जाइए और आराम से वहां रहिएगा।’’ व्यापारी ने कहा, ‘‘पगले! वहां कुछ भी लेकर नहीं जाया जा सकता। सबको अकेले और खाली हाथ ही जाना पड़ता है।’’

इस पर संभु बोला, ‘‘मालिक! तब तो यह डंडा आप ही रखिए क्योंकि मुझे सबसे बड़ा मूर्ख तो आप ही दिखे। जब कुछ लेकर जाया नहीं जा सकता तो आपने बेकार ही पूरा जीवन धन-दौलत और सुख-सुविधाओं को एकत्र करने में नष्ट कर दिया। न तो दान-पुण्य किया, न ही भगवान का भजन। इस डंडे के असली हकदार तो आप ही हो।’’

Jyoti

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