‘भविष्यवाणी’ गलत होने पर पैसा वापस

Saturday, Jul 30, 2022 - 01:41 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
मुझे खास ज्ञान तो नहीं है लेकिन लोग खुद-ब-खुद शिकार बनने को तैयार हों तो मैं उनकी अज्ञानता को अपना ज्ञान बना लेता हूं। जिस तरह अशुद्ध भोगियों को शुद्ध चीजें नहीं पचतीं, ठीक उसी तरह अज्ञानियों को ज्ञान की बातें समझ नहीं आतीं। इसीलिए तो चार कौओं के बीच कोयल भी खुद को कौआ मानकर रह जाती है।

एक दिन मैंने घर पर गारंटी वाली भविष्यवाणी का बोर्ड लगा कर ‘भविष्यवाणी गलत होने पर पैसा वापस’ वाली पंक्ति बड़े-बड़े अक्षरों में लिखवा दी। शुक्रहै कि भारतीय शिक्षा व्यवस्था आज भी इतनी अपडेट नहीं हुई है कि वह भविष्यवाणियों को मात दे सके। मैं इसी बहती गंगा में हाथ धोकर नहीं बल्कि सिर से पैर तक डूब कर अपनी चांदी (हो सके तो सोना भी) करना चाहता था।

इस धंधे में कामयाबी अपनी काबिलियत के हिसाब से नहीं सामने वाले की अज्ञानता पर निर्भर करती है। एक दिन एक अंधविश्वासी मेरे पास आया। उसकी उंगलियां कम और अंगूठियां ज्यादा थीं। चेहरा एक था चिंताएं अनेक थीं। आंखें दो थीं लेकिन रोने के लिए पूरा बदन पड़ा था। मैं उसके डर में अपना व्यापार खोजने लगा। मैंने उसकी समस्या जानी और पता चला कि घर में आॢथक तंगी चल रही है। मैं सॉफ्टवेयर में उसका नाम और जन्मतिथि भर कर पंचांग निकालने ही वाला था कि वह बोल उठा,‘‘महाराज! इसकी आवश्यकता नहीं है। यह तो मेरे पास है। मुझे केवल आॢथक संकट से बचने का कोई उपाय बताइए।’’

मैंने कहा, ‘‘बेटा! आॢथक संकट एकाएक दूर नहीं होंगे। छोटी-छोटी बचत बड़े आॢथक संकट से तुम्हें निजात दिला सकती है। कल तुम दुकान के लिए गाड़ी से मत जाना। हो सके तो पैदल ही जाना।’’

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आश्चर्य की बात यह थी कि वह मेरी बातों का शब्दश: पालन कर अपने अन्य कई मित्रों के साथ लौटा। सभी मेरे चरणों में साष्टांग लेटे हुए थे। मैंने पूछा,‘‘ऐसी क्या बात हो गई जो आप सब मेरे पास चले आए हैं?’’

एक दिन पहले जो अंधभक्त आया था उसने कहा, ‘‘महाराज! आपके कहे अनुसार मैं गाड़ी पर न जाकर पैदल अपनी दुकान चला गया। दुकान जाते ही मुझे पता चला कि पैट्रोल का भाव बढ़ गया है। आपने न केवल मेरे रुपए बचाए हैं बल्कि मेरा विश्वास जीत लिया है। मुझे पूरा विश्वास है कि कल अवश्य लाखों-करोड़ों का लाभ करवाएंगे। मुझसे आपकी चमत्कारी महिमा के बारे में जानकर ये लोग भी आपकी शरण में आए हैं। इनका भी उद्धार कीजिए।’’

सबने से अच्छी-खासी दक्षिणा मुझे चढ़ा दी। अब उन्हें कौन बताए कि महंगाई का बढ़ना और सूर्य का पूर्व से उदय होना दोनों सार्वभौमिक सच्चाइयां हैं। वे तो इसे मेरी ही महिमा मान रहे थे। मैंने भी ईमानदारी से महिमावान होने का नाटक किया और उन्हें विदा किया।

—डा. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त

Jyoti

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