Dhanteras 2020: भगवान धनवंतरि कौन थे, समस्त देवी-देवताओं में प्राप्त है ये दर्जा

Sunday, Nov 08, 2020 - 04:50 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान धनवंतरि की पूजा की जाती है, शास्त्रों में इस दिन धनतेरस के नाम से जाना जाता है। इस बार धनतेरस का पर्व 13 नवंबर को मनाया जा रहा है। आप में से लगभग लोग इस जानकारी के बारे में जानते ही हैं, मगर भगवान धनंवतरि भगवान कौन थे, उनका सनातन धर्म में क्या महत्व है? जी हां, आप सही समझ रहे हैं हम आपको इसी बारे मे बताने वाले हैं। इस जानकारी में हम आपको भगवान धनवंतरि से जुड़ी खास बातें-

हिंदू धर्म में भगवान धन्वंतरि को देवताओं का वैद्य यानि चिकित्सक का दर्जा प्राप्त है। महान चिकित्सक कहे जाने वाले, धनवंरि को देव पद प्राप्त था। तो वहीं सनातन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन्हें भगवान विष्णु के अवतार भी कहा जाता है।

कथाओं के मुताबिक पृथ्वीलोक में भगवान धनवंतरि का अवतरण समुद्र मंथन के समय हुआ था। शास्त्रों में किए वर्णन के अनुसार शरद पूर्णिमा को चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धन्वंतरि, चतुर्दशी को काली माता और अमावस्या को भगवती लक्ष्मी जी का सागर से प्रादुर्भाव हुआ थ। जिस कारण दीपावली के 2 दिन पहले धनतेरस को भगवान धन्वंतरि का जन्म धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। कथाएं प्रचलित हैं इसी दिन इन्होंने आयुर्वेद का भी प्रादुर्भाव किया था।

भगवान विष्णु का रूप कहे जाने वाले भगवान धनवंतरि की 4 भुजाएं हैं। जिसमें से ऊपर की दोनों भुजाओं में शंख और चक्र धारण किए हुए हैं, जबकि अन्य 2 भुजाओं में से एक में जलूका और औषध एवं दूसरे में वे अमृत कलश लिए हुए हैं। बताय जाता है कि इनका प्रिय धातु, पीतल है। यही कारण है कि धनतेरस के दिन पीतल आदि के बर्तन खरीदने की परंपरा प्रचलित है।
 

शास्त्रों में भगवान धनवंतरि को आयुर्वेद की चिकित्सा करने वाले वैद्य आरोग्य के देवता भी कहा जाता है। इन्होंने ही अमृतमय औषधियों की खोज की थी।


पौराणिक कथाओं के अनुसार इनके वंश में दिवोदास थे, जिन्होंने शल्य चिकित्सा का विश्व का पहला विद्यालय काशी में स्थापित किया, इसके प्रधानाचार्य सुश्रुत बनाए गए थे। इन्होंने ही 'सुश्रुत संहिता' लिखी थी। बता दें 'सुश्रुत' विश्व के पहले सर्जन थे।

Jyoti

Advertising