मृत्यु आने से आठ दिन पहले स्वभाव में ऐसे आता है बदलाव

Thursday, Aug 11, 2022 - 02:27 PM (IST)

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Sant Eknath story: संत एकनाथ जी की एक कथा है। एक आदमी उनके पास आया और उसने कहा महात्मा आप कितने शांत हैं, कितने सज्जन हैं। हम लाख बार कोशिश करते हैं किंतु आप जैसा नहीं हो पाते। सब कुछ सुनने पर एकनाथजी ने कहा मेरा तो ठीक है, किंतु आप के यहां आते ही एक बात मेरी समझ में आई। समझ में नहीं आता कि कहूं या न कहूं। आज से आठ दिन बाद आप की मृत्यु है। यह सुनकर वह आदमी बेचैन हो गया और अपने घर निकल गया। आठ-दस दिन गुजर गए। उसे मृत्यु नहीं मिली। तब क्रोधित होकर वह एकनाथजी के पास आया। उसने कहा आपने बेकार ही में मुझे डरा दिया था। आपने झूठ क्यों कहा ?

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तब एकनाथजी ने कहा खैर वह सब रहने दो। एक बात कहो। इन आठ दिनों में तुमने कितनों के साथ झगड़ा किया। कितनों को ठगा। तब उसने कहा छोड़ीए भी। हर पल तो आंखों के सामने मौत दिख रही थी। 

इसलिए हर किसी को कह रहा था कि चार दिन ही जीना है चैन से रहेंगे। किसी का दिल दुखाने की हिम्मत ही नहीं थी। किसी भी चीज की चाहत बाकी नहीं रही। सोचता कि इन सबकी क्या जरूरत। यह सब साथ तो आने वाला ही नहीं है। सुनकर हंसते हुए एकनाथ जी ने कहा जो विचार इन आठ दिनों में आपके मन में उभरे वही विचार हमेशा मेरे मन में रहते हैं। मरण का स्मरण हो तो स्वभाव में परिवर्तन होता है। यही तो फर्क है आपमें और मुझमें।


आम तौर पर संत तथा सामान्य लोगों का व्यवहार एक जैसा होता है किंतु दोनों के दृष्टिकोण में जमीन-आसमान का अंतर होता है। आम लोग स्थूलता को स्पर्श करते हैं, अंतरंग नहीं देखते। संत अंतरंग को स्पर्श करते हैं, स्थूलता नहीं देखते। संतों को मरण सदा याद रहता है और हम मरण की कल्पना मात्र से दूर भागते हैं। 

Niyati Bhandari

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