...तो ऐसे हुआ था गणेश जी की पुत्री का प्राकट्य

Friday, Nov 29, 2019 - 03:59 PM (IST)

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पौराणिक शास्त्रों में प्रथम पूज्य गणेश जी के दो पत्नियां ऋद्धि-सिद्धि का वर्णन मिलता है। धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक सिद्धि से ‘क्षेम’ और ऋद्धि से ‘लाभ’ नाम के 2 पुत्र हुए। परंपराओं के अनुसार इन्हें ही 'शुभ-लाभ' कहा जाता है। तो वहीं तुष्टि और पुष्टि को शास्त्रों में गणेश जी की बहुएं बताया गया है तथा आमोद और प्रमोद हैं। परंतु क्या आप जानते हैं इनके अलावा इनकी एक बेटी भी थी। जी हां, आप में से आधे से ज्यादा लोग आज भी इस बात से अंजान ही होंगे। दरअसल धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गणेश जी की एक पुत्री भी है जिसका नाम संतोषी है। जी हां, आप सही सोच रहे हैं। हम संतोषी माता की ही बात कर रहे हैं संतोषी माता। इनकी महिमा के बारे में तो सभी जानते ही हैं। देवी लक्ष्मी की ही तरह माता संतोषी की भी शुक्रवार के दिन पूजा की जाती है। आइए जानते है कैसे हुआ था माता संतोषी का प्राकट्य-

प्रचलित कथाओं के मुताबिक भगवान गणेश जी अपनी बुआ से रक्षासूत्र बंधवा रहे थे। इसके बाद तोहफ़ों का लेन-देन देखने के बाद गणेश जी के पुत्रों ने इस रस्म के बारे में गणेश जी से पूछा। जिसका उत्तर देते हुए गणेश जी ने कहा कि यह धागा नहीं बल्कि एक सुरक्षा कवच है। जो आशीर्वाद और भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक भी कहलाता है। अपने पिता की ये बातें सुनकर शुभ और लाभ ने गणेश जी से कहा कि ऐसा है तो हमें भी एक बहन चाहिए। यह सुनकर भगवान गणेश ने अपनी शक्तियों से एक ज्योति उत्प‍न्न की और उनकी दोनों पत्नियों की आत्मशक्ति के साथ उसे सम्मिलित कर लिया। इस ज्योति ने एक कन्या का रूप ले लिया। तो ऐसे हुआ गणेश जी की पुत्री का जन्म जो आगे चलकर संतोषी माता के नाम से ब्राह्मांड में  प्रख्यात हुई। बता दें पुराणों में यह कथा अलग अलग पुराणों में भिन्न प्रकार से मिलती है।
 

Jyoti

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