दत्तात्रेय जयंती 2020: इस कवच का पाठ करने से मिलेगी मानसिक तनाव से राहत

Tuesday, Dec 29, 2020 - 12:19 PM (IST)

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29 दिसंबर दिन मंगलवार यानि आज एक साथ सनातन धर्म के दो पर्व मनाए जा रहे हैं। जिसमें से एक है अन्नपूर्णा जयंती तथा दूसरा है दत्तात्रेय जंयती। सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार भगवान दत्तात्रेय,महर्षि अत्रि और उनकी सहधर्मिणी अनुसूया के पुत्र थे। जिनके पिता महर्षि अत्रि सप्तऋषियों में से एक माने जाते हैं और माता अनुसूया को सतीत्व के प्रतिमान के रूप में उदधृत किया जाता है। इसके अलावा धार्मिक शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान दत्तात्रेय चंद्र देव और ऋषि दुर्वाशा के भाई थे।  कहा जाता है चंद्रमा को ब्रह्मा और ऋषि दुर्वाशा को शिव का रूप ही माना जाता है। दत्तात्रेय जयंती का पर्व को भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ, इसलिए इस दिन बहुत ही खास रूप से मनाया जाता है। इसके अतिरिक्त भगवान दत्तात्रेय ब्रह्मा-विष्णु-महेश के अवतार भी कहे जाते हैं।

शास्त्रों में इनके बारे में श्लोक वर्णित है जो इस प्रकार है- 
"आदौ ब्रह्मा मध्ये विष्णुरन्ते देवः सदाशिवः
मूर्तित्रयस्वरूपाय दत्तात्रेयाय नमोस्तु ते।
ब्रह्मज्ञानमयी मुद्रा वस्त्रे चाकाशभूतले
प्रज्ञानघनबोधाय दत्तात्रेयाय नमोस्तु ते।।"

भावार्थ- जो आदि में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु तथा अन्त में सदाशिव है, उन साक्षात भगवान दत्तात्रेय को बारम्बार नमस्कार है। जिनकी मुद्रा है ब्रह्मज्ञान, आकाश और भूतल जिनके वस्त्र हैं एवं जो साकार प्रज्ञानघन स्वरूप है, उन्हें बारम्बार नमस्कार है। 

भगवान महाराज दत्तात्रेय आजन्म ब्रह्मचारी, अवधूत और दिगम्बर रहे थे। सर्वव्यापी भगवान दत्तात्रेय अपने भक्तों पर अपनी अपार कृपा करते हैं और उन्हें हर प्रकार के संकट से उन्हें बाहर निकालते हैं।  ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिस किसी व्यक्ति को मानसिक, या कर्म से या वाणी से जुड़ी कोई कठिनाई आ रही हो उस व्यक्ति को भगवान दत्तात्रेय की उपासना के साथ-साथ निम्न कवच का पाठ करना चाहिए। 
।। श्री गणेशाय नमः ।।
श्री दत्तात्रेयाय नमः ।। ऋषय ऊचुः ।।
कथं संकल्पसिद्धिः स्याद्वेवव्यास कलौ युगे I
धर्मार्थकाममोक्षाणां साधनं किमुदाहृतं ।। १ ।।

व्यास उवाच ।।
शृण्वन्तु ऋषयः सर्वे शीघ्रं संकल्पसाधनं I
सकृदुच्चारमात्रेण भोगमोक्षप्रदायकं ।। २ ।।

गौरीशृंगे हिमवतः कल्पवृक्षोपशोभितं I 
दीप्तेदिव्यमहारत्नहेममंडपमध्यगं ।। ३ ।।

रत्नसिंहासनासीनं प्रसन्नं परमेश्वरं ।।
मंदस्मितमुखांभोजं शंकरं प्राह पार्वती ।। ४ ।।

श्री देव्युवाच ।।
देवदेव महादेव लोकशंकर शंकर I
मंत्रजालानि सर्वाणि यंत्रजालानि कृत्स्नशः ।। ५ ।।

तंत्रजालान्यनेकानि मया त्वत्तः श्रुतानि वै I
इदानीमं द्रष्टुमिच्छामि विशेषेण महीतलं ।। ६ ।।

इत्युदीरितमाकर्ण्य पार्वत्या परमेश्वरः I
करेणामृज्य सन्तोषात्पार्वतीं प्रत्यभाषत ।। ७ ।।

मयेदानीं त्वया सार्धं वृषमारुह्य गम्यते I
इत्युक्त्वा वृषमारुह्य पार्वत्या सह शंकरः ।। ८ ।।

ययौ भूमंडलं द्रष्टुं गौर्याः चित्राणि दर्शयन् I
क्वचित विंध्याचलप्रान्ते महारण्ये सुदुर्गमे ।। ९ ।।

तत्र व्याहर्तुमायांतं भिल्लंपरशुधारिणं I
वर्ध्यमानं महाव्याघ्रं नखदंष्ट्राभिरावृतं ।। १० ।।

अतीव चित्रचारित्र्यं वज्रकाय समायुतं I
अप्रयन्तमनायासमखिन्नं सुखमास्थितं ।। ११ ।।

पलायन्तं मृगं पश्चादव्याघ्रो भीत्या पलायितः I
एतदाश्चर्यमालोक्य पार्वती प्राह शंकरं ।। १२ ।।

श्री पार्वत्युवाच ।।
किमाश्चर्यं किमाश्चर्यमग्रे शंभो निरीक्ष्यतां I
इत्युक्तः स ततः शंभुर्दृष्ट्वा प्राह पुराणवित् ।। १३ ।।

श्री शंकर उवाच ।।
गौरी वक्ष्यामि ते चित्रमवाड्मानसगोचरं ।।
अदृष्ट पूर्वं अस्माभिः नास्ति किंचिन्न न कुत्रचित् ।। १४ ।।

मया सम्यक समासेन वक्ष्यते शृणु पार्वति I
अयं दूरश्रवा नाम भिल्ल परम धार्मिकः ।। १५ ।।

समित्कुशप्रसूनानि कंदमूल फलादिकं I
प्रत्यहं विपिनं गत्वा समादाय प्रयासतः ।। १६ ।।

प्रिये पूर्वं मुनींद्रेभ्यः प्रयच्छति न वांछति I
ते अपि तस्मिन्नपि दयां कुर्वते सर्व मौनिनः ।। १७ ।।

दलादनो महायोगी वसन्नेव निजाश्रमे I
कदाचित स्मरत सिद्धं दत्तात्रेयं दिगम्बरं ।। १८ ।।

दत्तात्रेयः स्मर्तृगामी चेतिहासं परीक्षितुं I
तत्क्षणात सोSपी योगीन्द्रो दत्तात्रेय उपस्थितः ।। १९ ।।

तद दृष्टवाSSश्चर्यतोषाभ्यां दलादन महामुनिः I
संपूजाग्रे निषीदन्तं दत्तात्रेमुवाच तं ।। २० ।।

मयोपहूतः संप्राप्तो दत्तात्रेय महामुने I
स्मर्तुगामी त्वमित्येतत किंवदन्ती परीक्षितुं ।। २१ ।।

मयाद्य संस्मृतोSसि त्वमपराधं क्षमस्व मे I
दत्तात्रेयो मुनिं प्राह मम प्रकृतिरिदृशी ।। २२ ।।

अभक्त्या वा सुभक्त्या वा यः स्मरेन्मामनन्यधीः I
तदानीं तमुपागत्य ददामि तदभीप्सितं ।। २३ ।।

दत्तात्रेयो मुनिं प्राह दलादन मुनीश्वरं I
यदिष्टं तत् वृणीष्व त्वं यत प्राप्तोSहं त्वया स्मृतः ।। २४ ।।

दत्तात्रेयं मुनिः प्राह मया किमपि नोच्यते I
त्वच्चित्ते यत्स्थीतं तन्मे प्रयच्छ मुनिपुंगव ।। २५ ।।

श्री दत्तात्रेय उवाच ।।
ममास्ति वज्रकवचं गृहाणेत्यवदन्मुनिं I
तथेत्यंगीकृतवते दलादन मुनये मुनिः ।। २६ ।।

स्ववज्रकवचं प्राह ऋषिच्छन्दः पुरःसरं I
न्यासं ध्यानं फलं तत्र प्रयोजनमशेषतः ।। २७ ।।
 

Jyoti

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