दर्श अमावस्या: पितरों के साथ-साथ चाहते हैं चंद्रमा की कृपा, करें इन मंत्रों का जप

Tuesday, May 11, 2021 - 03:14 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
वैसाख मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को दर्श अमावस्या के नाम से जाना जाता है। प्रत्येक अमावस्या तिथि की तरह इस तिथि पर अपने पितरों का तर्पण आदि किया जाता है। इसके अलावा इस दौरान इस दिन गरीबों सहायता करना, अपने समार्थ्य के अनुसार दान-पुण्य आदि करना लाभदायक होती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रत्येक अमावस्या तिथि देवी लक्ष्मीतथा चंद्रमा को समर्पित होती है। जि/स कारण इस दौरान इनकी भी आराधना करना लाभदायक होता है। 

तो वहीं इसके अलावा शास्त्रों में अमावस्या तिथि के दिन को लेकर कुुछ मंत्रों का भी जिक्र भी मिलता है। कहा जाता है दर्श अमावस्या का पावन दिन व श्राद्ध आदि करने के लिए उत्तम होता है। कहा जाता है हर माह में आने वाली अमावस्या पर भी यूं तो लोग पित्तरों का तर्पण कर सकते हैं, परंतु इनमें से कुछ अमावस्या तिथियां अधिक शुभ मानी जाती हैं। इसी में से एक है दर्श अमावस्या। इस समय में पितरों का खास आशीष प्राप्त होता है। माना जाता है हिंदू धर्म के समस्त धार्मिक कार्यों की पूर्णता मंत्रों के बिना नहीं होती। श्राद्ध में भी इनका विशेष महत्व है। अत: आप भी अपने पितरों से खुशहाल जीवन का आशीर्वाद पाना चाह‍ते हैं तो निम्नलिखित मंत्रों के प्रयोग से आपकी हर मनोकामना पूर्ण हो सकती है।

यहां जानें कुछ खास मंत्र व उनके जाप की संख्या के बारे में- 
1. ॐ कुलदेवतायै नम:- 21 बार

2. ॐ कुलदैव्यै नम:- 21 बार

3. ॐ नागदेवतायै नम:- 21 बार

4. ॐ पितृ देवतायै नम:- 108 बार

5. ॐ पितृ गणाय विद्महे जगतधारिणे धीमहि तन्नो पित्रो प्रचोदयात्।- 1 लाख बार।

इन मंत्रों का प्रयोग कर पितरों को प्रसन्न किया जा सकता है।

इसके अलावा चंद्रमा की कृपा पाने के लिए करें इस चंद्रमा स्तोत्र का पाठ- 

ॐ श्वेताम्बर:श्वेतवपु:। किरीटी श्वेतधुतिर्दणडधरोद्विबाहु:। 
चन्द्रोऽम्रतात्मा वरद: शशाऽक: श्रेयांसि महं प्रददातु देव: ।।1।।
दधिशऽकतुषाराभं क्षीरोदार्नवसम्भवम्। 
नमामि शशिनंसोमंशम्भोर्मुकुटभूषणम् ।।2।।
क्षीरसिन्धुसमुत्पन्नो रोहिणीसहित: प्रभुः। 
हरस्य मुकटावास बालचन्द्र नमोस्तु ते ।।3।।
सुधामया यत्किरणा: पोषयन्त्योषधीवनम्। 
सर्वान्नरसहेतुंतं नमामि सिन्धुनन्दनम् ।।4।।
राकेशं तारकेशं च रोहिणी प्रियसुन्दरम्। 
ध्यायतां सर्वदोषघ्नं नमामीन्दुं मुहुर्मुह: ।।5।

Jyoti

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