Kundli Tv- सावधान! सच बोलने से भी होता है नुकसान

Monday, Jun 25, 2018 - 05:50 PM (IST)

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एक बार हंस, तोता, बगुला, कोयल, चातक, कबूतर, उल्लू आदि सब पक्षियों ने सभा करके सलाह की कि उनका राजा वैनतेय केवल वासुदेव की भक्ति में लगा रहता है, व्याधों से उनकी रक्षा का कोई उपाय नहीं करता इसलिए पक्षियों का कोई अन्य राजा चुन लिया जाए।


कई दिनों की बैठक के बाद सबने एक राय से सर्वांग सुंदर उल्लू को राजा चुना। अभिषेक की तैयारियां होने लगीं, विविध तीर्थों से पवित्र जल मंगवाया गया, सिंहासन पर रत्न जड़े गए, स्वर्णघट भरे गए, मंगल पाठ शुरू हो गया, ब्राह्मणों ने वेद पाठ शुरू कर दिया, नर्तकियों ने नृत्य की तैयारी कर ली। 


उलूक राज राज्य सिंहासन पर बैठने ही वाले थे कि कहीं से एक कौवा आ गया। कौवे ने सोचा यह समारोह कैसा? यह उत्सव किसलिए? पक्षियों ने भी कौवे को देखा तो आश्चर्य में पड़ गए। उसे तो किसी ने बुलाया ही नहीं था।


उन्होंने सुन रखा था कि कौवा सबसे चतुर कूट राजनीतिज्ञ पक्षी है, इसलिए उससे मंत्रणा करने के लिए सब पक्षी उसके चारों ओर इकट्ठे हो गए। 


उलूक राज के राज्याभिषेक की बात सुनकर कौवे ने हंसते हुए कहा, ‘‘यह चुनाव ठीक नहीं हुआ। मोर, हंस, कोयल, सारस, चक्रवाक, शुक आदि सुंदर पक्षियों के रहते दिवांध उल्लू और टेढ़ी नाकवाले अप्रिय दर्शी पक्षी को राजा बनाना उचित नहीं है। यह स्वभाव से ही रौद्र है और कटुभाषी है। फिर अभी तो वैनतेय राजा बैठा है। एक राजा के रहते दूसरे को राज्यासन देना विनाशक है। पृथ्वी पर एक ही सूर्य होता है, वही अपनी आभा से सारे संसार को प्रकाशित कर देता है। एक से अधिक सूर्य होने पर प्रलय हो जाती है। प्रलय में बहुत से सूर्य निकल जाते हैं, उनसे संसार में विपत्ति ही आती है, कल्याण नहीं होता। राजा एक ही होता है। उसके नाम-कीर्तन से ही काम बन जाते हैं। यदि तुम उल्लू जैसे नीच, आलसी, कायर, व्यसनी और पीठ पीछे कटुभाषी पक्षी को राजा बनाओगे तो नष्ट हो जाओगे।


कौवे की बात सुनकर सब पक्षी उल्लू को राज मुकुट पहनाए बिना चले गए। केवल अभिषेक की प्रतीक्षा करता हुआ उल्लू ,उसकी मित्र कृकालिका और कौवा रह गए। उल्लू ने पूछा, ‘‘मेरा अभिषेक क्यों नहीं हुआ?’’


कृकालिका ने कहा, ‘‘मित्र! एक कौवे ने आकर रंग में भंग कर दिया। शेष सब पक्षी उड़कर चले गए हैं। केवल वह कौवा ही यहां बैठा है।’’


तब उल्लू ने कौवे से कहा, ‘‘दुष्ट कौवे! मैंने तेरा क्या बिगाड़ा था, जो तूने मेरे कार्य में विघ्न डाल दिया? आज से मेरा-तेरा वश परंपरागत वैर रहेगा।’’ 


यह कहकर उल्लू वहां से चला गया। कौवा बहुत चिंतित हुआ वहीं बैठा रहा। उसने सोचा, ‘‘मैंने अकारण ही उल्लू से वैर मोल ले लिया। दूसरे के मामलों में हस्तक्षेप करना और कटु सत्य कहना भी दुखप्रद होता है।’’ 


यही सोचता-सोचता वह कौवा वहां से चला गया, तभी से कौवों और उल्लुओं में स्वाभाविक वैर चला आता है।

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Niyati Bhandari

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