Dadi Prakashmani death anniversary: ज्ञान की बुलबुल थीं दादी प्रकाशमणि, उनकी एक मुस्कान हर लेती थी अनेकों कष्ट
punjabkesari.in Sunday, Aug 25, 2024 - 07:58 AM (IST)
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Dadi Prakashmani death anniversary: 1969 से 2007 तक प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की मुख्य प्रशासिका रहीं दादी प्रकाशमणि की मुस्कान अनेकों के कष्ट हर लेती थी। उनकी दृष्टि पाने के लिए लोगों के कदम रुक जाते थे, उन्होंने अनेकों को जीवन दान दिया, प्यार देकर अनेकों को जीना सिखाया, उनसे सदैव परमात्म स्नेह, प्यार की पालना महसूस होती थी।
ब्रह्माकुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्यालय के संस्थापक दादा लेखराज कृपलानी ‘ब्रह्मा बाबा’ उन्हें ज्ञान की बुलबुल कहते थे। एक कुशल प्रशासक के साथ वह समस्त ब्रह्माकुमारीज परिवार की स्नेहमयी दादी भी थीं। आज उनकी अनुपस्थिति विशाल परिवार में एक रिक्तता का आभास कराती है। वह निष्काम व आत्मिक प्रेम की प्रतिमूर्ति थीं।
दादी का लौकिक नाम रमा था। रमा का जन्म उत्तर भारतीय प्रांत हैदराबाद, सिंध (पाकिस्तान) में 1 सितम्बर, 1922 को हुआ। उनके पिता भगवान विष्णु के भक्त थे। रमा का भी श्री कृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति भाव रहता था। वह केवल 15 वर्ष की आयु में पहली बार ओम मंडली के संपर्क में आई थीं, जिसे 1936 में स्थापित किया गया था।
रमा की दीवाली के दौरान छुट्टियां थीं और इसलिए उनके पिता ने रमा से अपने घर के पास सत्संग में जाने के लिए कहा। इस आध्यात्मिक सभा (सत्संग) ओम मंडली का गठन दादा लेखराज द्वारा किया गया था। पहले दिन ही जब वह दादा से मिलीं तो एक अलग ही दिव्य अनुभव हुआ। 1939 में पूरा ईश्वरीय परिवार (ओम मंडली) कराची में जाकर बस गया।
12 साल की तपस्या के बाद मार्च 1950 में (भारत के स्वतंत्र होने के बाद) ओम मंडली माऊंट आबू में आई। 1952 में मधुबन माऊंट आबू से पहली बार ईश्वरीय सेवा शुरू की गई। बाबा (ब्रह्मा) के अव्यक्त होने के बाद, दादी जी मधुबन में रहीं और सभी सैंटर की देख-रेख की। 25 अगस्त, 2007 को दादी जी ने देह त्यागी।दादी प्रकाशमणि के प्रताप से ही सिंध हैदराबाद में रोपित पौधा आज वट वृक्ष का रूप धारण कर चुका है। ‘शांतिदूत’ पुरस्कार से सम्मानित दादी की याद में मधुबन (शांतिवन, आबू रोड) में प्रकाश स्तंभ बनाया गया है, जिस पर दादी की शिक्षाएं लिखी गई हैं।