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punjabkesari.in Sunday, Jan 02, 2022 - 11:38 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Charity in vedas: सफल जीवन क्या है? सफल जीवन उसी का है जो मनुष्य जीवन प्राप्त कर अपना कल्याण कर ले। भौतिक दृष्टि से तो जीवन में सांसारिक सुख और समृद्धि की प्राप्ति को ही अपना कल्याण मानते हैं परंतु वास्तविक कल्याण है सदा-सर्वदा के लिए जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होना अर्थात भगवद् प्राप्ति। अपने शास्त्रों तथा अपने पूर्वज ऋषि-महर्षियों ने सभी युगों में इसका उपाय बताया है। 

PunjabKesari Daan Ka Mahatva

चारों युगों में अलग-अलग चार बातों की विशेषता है- सतयुग में तप, त्रेता में ज्ञान, द्वापर में यज्ञ और कलियुग में एकमात्र दान मनुष्य के कल्याण का साधन है। दान श्रद्धापूर्वक करना चाहिए, विनम्रतापूर्वक देना चाहिए। दान के बिना मानव की उन्नति अवरुद्ध हो जाती है। 

Daan Ka Mahatva: एक बार देवता, मनुष्य और असुर तीनों की उन्नति अवरुद्ध हो गई तो वे पितामह प्रजापति ब्रह्मा जी के पास गए और अपना दुख दूर करने के लिए उनसे प्रार्थना की। प्रजापति ब्रह्मा ने तीनों को मात्र एक अक्षर ‘द’ का उपदेश दिया।

स्वर्ग में भोगों के बाहुल्य से देवगण कभी वृद्ध न होकर सदा इंद्रिय भोग भोगने में लगे रहते हैं। उनकी इस अवस्था पर विचार कर प्रजापति ने देवताओं को ‘द’ के द्वारा इंद्रिय दमन का संदेश दिया। असुर स्वभाव से हिंसा वृत्ति वाले होते हैं, क्रोध और हिंसा इनका नित्य व्यापार है। अत: प्रजापति ने उन्हें दुष्कर्म से छुड़ाने के लिए ‘द’ के द्वारा जीव मात्र पर दया करने का उपदेश दिया। 

मनुष्य कर्मयोगी होने के कारण सदा लोभवश कर्म करने तथा धनोपार्जन में लगे रहते हैं। इस लिए ‘द’ के द्वारा उनके कल्याण के लिए दान करने का उपदेश दिया। विभव और दान देने की सामर्थ्य अर्थात मानसिक उदारता ये दोनों महान तप के ही फल हैं। विभव होना तो सामान्य बात है पर उस विभव को दूसरों के लिए देना यह मन की उदारता पर निर्भर करता है। यही है दान-शक्ति जो जन्म-जन्मांतर के पुण्य से प्राप्त होती है। भगवान वेदव्यास ने दान धर्म को चार भागों में विभक्त किया है।

Types of daan in hinduism

नित्यदान : प्रत्येक व्यक्ति को अपने सामर्थ्य अनुसार कर्तव्य बुद्धि से नित्य कुछ न कुछ दान करना चाहिए। असहाय एवं गरीबों को नित्यप्रति सहायता रूप में दान करना कल्याणकारी है। शास्त्रों में प्रत्येक गृहस्थ के पांच प्रकार के ऋणों- देव ऋण, पितृ ऋण, ऋषि ऋण, भूत ऋण और मनुष्य ऋण से मुक्त होने के लिए प्रतिदिन पांच महायज्ञ करने की विधि दी गई है। 

 

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अध्ययन- अध्यापन करना ब्रह्म यज्ञ है जिससे ऋषि ऋण से मुक्ति मिलती है, श्राद्ध तर्पण करना पितृयज्ञ है जिससे पितृऋण से मुक्ति, हवन पूजन करना देव यज्ञ है जिससे देव ऋण से मुक्ति, बलिवैश्व देव यज्ञ करना अर्थात सारे विश्व को भोजन देना भूत यज्ञ है जिससे भूत ऋण से मुक्ति मिलती है और अतिथि सत्कार करना मनुष्य यज्ञ है जिससे मनुष्य ऋण से मुक्ति मिलती है। अत: गृहस्थ को यथासाध्य प्रतिदिन इन्हें करना चाहिए।

नैमित्तिक दान : जाने-अनजाने में किए गए पापों के शमन हेतु पवित्र देश में तीर्थ आदि तथा अमावस्या, पूर्णिमा, व्यतिपात, चंद्रग्रहण, सूर्यग्रहण आदि पुण्यकाल में जो दान किया जाता है उसे नैमित्तिक दान कहते हैं।

काम्य दान : किसी कामना की पूर्ति के लिए ऐश्वर्य, धन-धान्य, पुत्र-पौत्र आदि की प्राप्ति तथा अपने किसी कार्य की सिद्धि हेतु जो दान दिया जाता है उसे काम्य दान कहते हैं।

विमलदान : भगवन की प्रीति प्राप्त करने के लिए निष्काम भाव से बिना किसी लौकिक स्वार्थ के लिए दिया जाने वाला दान विमल दान कहलाता है। देश, काल और पात्र को ध्यान में रख कर अथवा नित्यप्रति किया गया दान अधिक कल्याणकारी होता है। यह सर्वश्रेष्ठ दान है। 

देवालय, विद्यालय, औषधालय, भोजनालय, अनाथालय, गौशाला, धर्मशाला, कुएं, बावड़ी, तालाब आदि सर्वजनोपयोगी स्थानों का निर्माण आदि कार्य यदि न्यायोपार्जित द्रव्य से बिना यश की कामना से भगवद प्रीत्यर्थ किए जाएं तो परम कल्याणकारी सिद्ध होंगे। न्यायपूर्वक अर्जित किए धन का दशमांश मनुष्य को दान कार्य में ईश्वर की प्रसन्नता के लिए लगाना चाहिए।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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