अयोध्या में यहां होती है श्री कृष्ण की पूजा

Monday, Apr 01, 2019 - 02:11 PM (IST)

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कहा जाता है कि त्रेतायुग में भगवान राम के श्रीधाम जाने के बाद उनके पुत्र कुश ने कनक भवन में राम-सीता की मूर्तियां स्थापित कीं। एक समय बाद यह भवन धीरे-धीरे जर्जर होने लगा। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस मंदिर में द्वापर युग के भी कुछ साक्ष्य मिले हैं।

कब, क्यों और कैसे आए श्री कृष्ण अयोध्या?
अयोध्या और श्रीकृष्ण के संबंध को लेकर धर्म के कुछ जानकार कहते हैं कि वैसे तो हर भक्त यमुना से कन्हैया के लगाव को जानता है लेकिन यह बहुत कम लोगों को पता है कि द्वापर युग में श्रीकृष्ण जब राम की जन्मभूमि अयोध्या से गुजरे तो सरयू मइया का दर्शन करना नहीं भूले। कहा गया है कि जग में सुंदर हैं दो नाम। चाहे कृष्ण कहो या राम। रामावतार पहले हुआ था और फिर कृष्णावतार।  जब भगवान ने कृष्ण का अवतार लिया तो पहले अवतार की जन्मभूमि पर आए थे। यहां मां सरयू का दर्शन किया।  कनक भवन में रुके। फिर दशरथ गद्दी में विराजमान हुए।

ऐसा कहा जाता है कि राम और सीता जी की शादी के बाद कैकेयी ने जब बहू का मुंह देखा तो उन्होंने भेंट स्वरूप कनक भवन सीता माता को प्रदान किया था। इसी भवन के प्रांगण में भगवान राम और सीता माता रहते थे। ऐसी मान्यता है कि कैकेयी ने राजा दशरथ से कहकर विश्वकर्मा से इस भवन का निर्माण कराया था। कनक भवन तब पांच कोस में फैला हुआ था। कनक भवन से प्राप्त विक्रमादित्य कालीन शिलालेख में ऐसा वर्णन है कि जब जरासंध का वध करने के उपरांत कृष्ण प्रमुख तीर्थों की यात्रा करते हुए अयोध्या आए तो कनक भवन के टीले पर एक पद्मासना देवी को तपस्या करते हुए देखा और मंदिर की विपरीत दशा देखकर भवन का जीर्णोद्धार कराया और वहां माता सीता और भगवान राम की मूर्तियां स्थापित कीं। 

इस शिलालेख में यह भी बताया गया है कि आज से लगभग 2070 वर्ष पूर्व समुद्रगुप्त ने भी इस भवन का जीर्णोद्धार करवाया था। बाद में सन् 1761 ई. में भक्त कवि रसिक अली ने कनक भवन के अष्टकुंज का जीर्णोद्धार करवाया।

वर्तमान के कनक भवन का निर्माण ओरछा राज्य के राजा सवाई महेन्द्र श्री प्रताप सिंह की पत्नी महारानी वृषभानु कुंवरि ने कराया था। मंदिर के गर्भगृह के पास ही एक शयन कक्ष है जहां भगवान राम शयन करते थे। इस कक्ष के चारों ओर आठ सखियों के कुंज हैं जिन पर उनके चित्र बनाए गए हैं।  साथ ही सभी सखियों के अलग-अलग रूपों को आकृति के रूप में उकेरा गया है।

चारुशीला, क्षेमा, हेमा, वरारोहा, लक्ष्मण, सुलोचना, पद्मगंधा और सुभगा ये आठों सखियां भगवान राम की सखियां कही जाती हैं, वहीं इनके अतिरिक्त आठ सखियां और भी हैं जिन्हें मां सीता की अष्टसखी कहा जाता है। उनमें चंद्र कला, प्रसाद, विमला, मदन कला, विश्व मोहिनी, उर्मिला, चंपाकला, रूपकला हैं। कलियुग के वर्तमान समय में भी लोगों का यह विश्वास है कि आज भी इस भवन में माता सीता और भगवान राम विचरण करते हैं।

गद्दी में ये मूर्तियां हैं स्थापित
जानकारों के मुताबिक चूंकि ये गद्दी मर्यादा पुरुषोत्तम राम के पिता दशरथ महाराज की है, ऐसे में द्वापर युग में श्री कृष्ण ने भी दशरथ की गद्दी पर आकर माथा टेका। बाद में जब अयोध्या नगरी को दोबारा बसाया गया और इस मंदिर का पुननिर्माण हुआ तो यहां भगवान राम के साथ-साथ भगवान कृष्ण की भी मूर्ति स्थापित की गई।  दशरथ गद्दी के पुजारी कहते हैं कि आस्था रखने वाले भली-भांति जानते हैं कि त्रेतायुग में धर्म की स्थापना के लिए भगवान राम ने अवतार लिया तो द्वापर युग में धर्म की ध्वज पताका फहराने के लिए भगवान कृष्ण ने जन्म लिया।

Niyati Bhandari

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