आइए करें ''आत्मा'' से खास मुलाकात
Tuesday, Jun 23, 2020 - 02:00 PM (IST)
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
परमेश्वर को जानने से पहले अपने आप को अर्थात आत्मा को जानना अति आवश्यक है। आत्म तत्व क्या है? क्या इसका स्वरूप है? इसके लिए हमारे ऋषियों ने वैदिक मान्यता अनुसार जो परमेश्वर के अनुग्रह से जाना वह सभी मनुष्यों के कल्याणार्थ अपने शास्त्रों में वर्णन कर दिया है।
मान्यता के अनुसार :
आत्मा अनादि है। जैसे परमेश्वर और मूल प्रकृति अनादि है, वैसे ही आत्मा भी अनादि है। इसका आदि प्रारंभ कहां से हुआ, यह कहा नहीं जा सकता। अनादि उसको कहते हैं जिसका कभी प्रारंभ न हुआ हो। जैसे परमेश्वर सदा से अनादि है वैसे आत्मा भी सदा से अनादि है।
आत्मा अल्पज्ञ है। परमेश्वर सर्वज्ञ सर्वान्तर्यामी, सबको जानने वाले हैं, आत्मा ऐसा नहीं है। आत्मा के पास जो ज्ञान है वह सब अन्य द्वारा प्राप्त है। परमेश्वर के सान्निध्य से आत्मा बहुत सारा शुद्ध ज्ञान प्राप्त करता है किंतु फिर भी अल्पज्ञ ही रहता है।
आत्मा एक देशीय है। परमात्मा सर्वव्यापक है, सर्वत्र विद्यमान है किंतु आत्मा एक देशीय ही है।
आत्माएं संख्या में अनन्त जैसी हैं। आधुनिक वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी के एक वर्ग किलोमीटर में लगभग सात अरब जीव रहते हैं। सभी छोटे-बड़े जीव मिलाकर यह गणना वैज्ञानिकों ने की है। जब एक वर्ग किलोमीटर में सात अरब जीव हैं तो समस्त पृथ्वी पर कितने जीव होंगे? कल्पना करके देखें और पूरे ब्राह्मांड के जीव कितने होंगे, यह हमारी कल्पना से बाहर हो जाएगा।
जीवात्मा शरीर धारण करता है। परमेश्वर कभी शरीर धारण नहीं करते। परमात्मा अपने सभी कार्य बिना शरीर धारण किए, बिना किसी की सहायता के करते हैं।
किंतु आत्मा बिना शहर के संसार में कुछ भी कार्य नहीं कर सकता। इसको कार्य करने के लिए शरीर की आवश्यकता पड़ती है।
आत्मा कर्म करने में स्वतंत्र और फल पाने में परतंत्र है।
आत्मा निराकार है। जैसे प्रकृति से बनी वस्तुएं साकार हैं, वैसे आत्मा साकार नहीं है।
जो वस्तु अनेक अवयवों से मिलकर बनी हो और जिसमें रूप गुण हों, उसको साकार कहेंगे, अर्थात जो आंखों से दिखाई दे, वह साकार कहलाता है। इस परिभाषा के अनुसार न तो आत्मा अनेक अवयवों से मिलकर बना है, न ही उसमें रूप गुण है और न ही आंखों से दिखाई देता है इसलिए आत्मा निराकार है। यदि साकार की परिभाषा यह करें कि जो-जो इन्द्रियों से प्रतीत हो वह-वह साकार है। इस परिभाषा अनुसार भी आत्मा निराकार ही सिद्ध होवेगा, क्योंकि आत्मा रूप, रस, गंध, स्पर्श, शब्द आदि इन्द्रियों के विषयों से परे है और यदि साकार परिभाषा यह ली जाए कि जो-जो प्रकृति से बना है, वह-वह साकार तो भी आत्मा निराकार ही सिद्ध होगा।
कुछ आत्मा के निराकार होने पर आक्षेप करते हैं कि निराकार परमात्मा निराकार आत्मा में कैसे रह सकता है। यह कथन आक्षेप करने वालों की बालबुद्धि को ही दर्शाता है। जब साकार वस्तुएं एक देशीय होते हुए निराकार परमात्मा में रहती हैं तो एक देशीय निराकार आत्मा क्यों नहीं रह सकता अर्थात निराकार आत्मा एक देशीय है और एक देशीय पदार्थ निराकार परमेश्वर में रहता है, रह सकता है।