Chitkul: भारत-चीन सीमा के अंतिम गांव छितकुल में स्थापित है देवी माथी का साम्राज्य

punjabkesari.in Thursday, Aug 15, 2024 - 11:19 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Chitkul tourist places: बर्फ से लदी पर्वत चोटियों से सटे हरे-भरे घास के मैदानों के बीच से निकलती छोटी-छोटी नदियां, जिनकी सतह पर मौजूद सफेद पत्थरों पर जब सूरज की किरणें पड़ती हैं, तो अविरल धारा पर उभरते सफेद मोती जैसे प्रतिबिंब को देख ऐसा लगता है कि कहीं यह किसी चित्रकार की कल्पना तो नहीं। 

भारत-तिब्बत सीमा पर बसा छितकुल गांव ऐसी ही एक जगह है। इसे भारत का अंतिम गांव भी कहा जाता है। यह समुद्र तल से करीब 3450 मीटर की ऊंचाई पर हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में स्थित बास्पा घाटी का अंतिम और ऊंचा गांव है। इस गांव को किन्नौर जिले का क्राऊन भी कहा जाता है। गांव में तीन प्राचीन मंदिर निर्मित थे, जो पहाड़ी परम्परागत वास्तु शिल्प के अद्भुत उदाहरण माने जाते थे।

PunjabKesari Chitkul tourist places

एक देवी माथी का, दूसरा शिव मंदिर और तीसरा प्राचीन बौद्ध मंदिर। अति प्राचीन होने के कारण इन मंदिरों को नया रूप दे दिया गया है और अब माथी देवी का परिसर नए रूप में अति आकर्षक और उत्कृष्ट पहाड़ी शैली में बनाया गया है। मंदिरों को प्राचीन स्वरूप देने का प्रयास किया गया है। 

पहले माथी देवी का मुख्य मंदिर तीन मंजिला था, जिसकी छत लकड़ी के शहतीरों से बनी थी। शिखर पर लकड़ी का अति सुंदर ताज था, जिसके किनारे नक्काशी की हुई झालरें थीं। इसके मध्यभाग में लकड़ी का लघु शिखर था। सबसे ऊपर वाली मंजिल के तीनों किनारों में लकड़ी का बरामदा था जो बंद था, परन्तु उस पर सुंदर नक्काशी की हुई थी। मंदिर लगभग तीन फुट ऊंचे चबूतरे पर निर्मित किया गया था, जिसका प्रवेश द्वार अति आकर्षक था। तकरीबन 600 वर्ष पूर्व निर्मित मंदिर की जगह अब नया मंदिर बनाने की आवश्यकता थी। इसी दृष्टि से देवता कमेटी और गांव के लोगों ने मिलकर माथी देवी परिसर को अत्यंत नया रूप दे दिया है।

ग्राम देवी हैं छितकुल माथी
छितकुल माथी यानी छितकुल गांव की माता वहां की ग्राम देवी हैं, जिन्हें रानी रणसंगा भी कहा जाता है। देवी के यहां आने की अत्यंत रोचक कथा बताई जाती है। पुराने लोगों के साथ देवी का प्रवक्ता भी देव-छाया में कथा दोहराया करता है। देवी ने हिमालय की यात्रा वृंदावन से आरंभ की थी। 

PunjabKesari Chitkul tourist places

वह मथुरा और बद्रीनाथ से होती हुईं तिब्बत पहुंचीं। उसके बाद वह गढ़वाल गईं। तत्पश्चात बुशहर रियासत की राजधानी सराहन आईं और बरुआ खड्ड के किनारे पहुंच गईं। इसके पार देवी ने देखा कि वह क्षेत्र अथवा राज्य सात भागों में बंटा है। शौंग गांव का देवता नरेसन अर्थात नारायण उनका भतीजा था। देवी ने इस खंड को संभालने के आदेश दिए। 

उसके बाद वह चांसू के लिए चल पड़ीं, जहां उन्होंने अपने दूसरे भतीजे नारायण को उस क्षेत्र की देख-रेख का उत्तरदायित्व सौंप दिया। उसके बाद वह कामरू पहुंचीं, जहां उनके पति बद्रीनाथ का राज्य था। कुछ दिन वहां रुकने के बाद वह सांगला गईं, जहां उनका एक और भतीजा बोरिंग नाग रुपिन घाटी को संभाले हुए था। तदोपरांत वह बटसेरी गईं, यहां भी उनके पति बद्रीनाथ का आधिपत्य था। इसे कामरू के बद्रीनाथ का भाई भी माना जाता है। 

इसी तरह रकछम में भी देवी ने अपने एक और भतीजे शमशीर को उस जनपद की देखरेख के लिए नियुक्त कर दिया तथा स्वयं छितकुल पहुंच गईं। यह स्थान उन्हें अत्यंत प्रिय और शांत लगा और देवी ने यहां स्थायी तौर पर रहने का निर्णय लिया ताकि यहां से वह सातों क्षेत्रों की कुशलता से देख-रेख कर सकें। देवी के आने से छितकुल गांव की लोकप्रियता और समृद्धि खूब बढ़ने लगी। लोगों ने अपनी फसलों और पशुओं के साथ गांव और अपने परिवार की दहलीज पर बड़ी सुख-समृद्धि महसूस की जिससे उनकी अगाध श्रद्धा देवी पर बढ़ती चली गई। देवी का भव्य मंदिर निर्मित हुआ और साथ अन्य मंदिर भी बने। सुंदर रथाड बनाया गया और देवी के साथ अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं उस पर प्रतिष्ठित हुईं। 

PunjabKesari Chitkul tourist places

किन्नर कैलाश का आखिरी पड़ाव
सम्पूर्ण जनपद में देवी माथी की बहुत पूछ और लोकप्रियता है। किन्नौर की धार्मिक यात्रा किन्नर कैलाश का छितकुल आखिरी पड़ाव माना जाता है, क्योंकि यहां से यात्री अब बसों और दूसरे वाहनों द्वारा सड़क मार्ग से कड़छम और अन्य गंतव्य स्थलों तक चले जाते हैं। 
परिक्रमा से लौटते समय यात्री ललान्ति अर्थात ला-लनती जोत पार करने के बाद कन्डो से देवी माथी को अर्पित करने के लिए डोडरो, रोसकोलच, जबीसड व तीशुर आदि विशेष प्रजाति के अति सुगंधित पुष्प ले जाते हैं, लेकिन देवी ने यात्रियों को सख्त हिदायत दी कि वे इन दुर्लभ फूलों को तोड़कर न लाएं, इसलिए अब कोई भी यात्री इन फूलों को तोड़ने का साहस नहीं करता। 

गांव में एक अन्य देवता कारू की पूजा भी की जाती है, जिसे देवी का दामाद माना जाता है। यह वनवासी देव है। छितकुल वही प्राचीन और ऐतिहासिक गांव है, जहां तिब्बती धर्मगुरु व महानुवादक रत्नभद्र ने चौथे बौद्ध मठ का गांव के बिल्कुल शिखर पर निर्माण करवाया था, लेकिन भारी बर्फबारी और ग्लेशियर के गिरने की चपेट में आकर यह मठ पूरी तरह ढह गया था। इसके चंद अवशेष इसके निर्माण स्थल पर आज भी देखे जा सकते हैं। लोकविश्वास है कि चिरकाल में छितकुल बौद्ध अनुयायियों का प्रधान आध्यात्मिक केंद्र था, जहां 360 लामा रहा करते थे।

यह भी मान्यता है कि इस बौद्ध मठ में धार्मिक अनुष्ठान हेतु प्रत्येक वर्ष गुगे के खोलीड मठ से 50 बौद्ध भिक्षुओं के आने की परम्परा रही है, क्योंकि यह मठ भी रत्नभद्र द्वारा स्थापित किया गया था। देवी माथी के साथ उनका यह करार था कि इन भिक्षुओं का सारा व्यय देवी के खजाने से किया जाता रहेगा। 

PunjabKesari Chitkul tourist places

यह परम्परा बहुत साल चली। वर्तमान मठ, जो प्राचीन बौद्ध मठ के ढहने के बहुत बाद निर्मित हुआ है उसमें धातुओं से बनी बुद्ध व बौद्ध देवी-देवताओं की प्रतिमाएं विद्यमान हैं। उनके बीच एक अति प्राचीन प्रतिमा रखी रहती है। 

माना जाता है कि यह प्रतिमा गांव के शिखर पर विद्यमान बौद्ध मठ में स्थापित थी। किन्नर कैलाश परिक्रमा करके जो यात्री यहां आते हैं, वे इस बौद्ध मठ में दीपदान तथा पूजा-अर्चना के उपरांत देवी माठी के मंदिर में अपनी इच्छानुसार दान देना नहीं भूलते। छितकुल गांव को चीन के साथ लगती सीमा का भी अंतिम गांव माना जाता है।   

PunjabKesari Chitkul tourist places


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Niyati Bhandari

Related News