यात्रा: लाखों जन्मों से मुक्त करता है चौरासी खंभा नंद भवन

Thursday, Apr 04, 2019 - 11:03 AM (IST)

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उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा जनपद से 15 किलोमीटर दूरी पर मथुरा-सादाबाद सड़क पर महावन नामक गांव ब्रज का बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थल है, जो श्री यमुनाजी के पार स्थित है। यहीं रोहिणी जी ने श्री बलराम जी को जन्म दिया। महावन नाम ही इस बात का द्योतक है कि यहां पहले सघन वन था। महावन गोकुल से आगे दो किलोमीटर दूर है। लोग इसे पुरानी गोकुल भी कहते हैं। यहीं पर रसखान की समाधि से थोड़ा आगे यमुना के तट पर ब्रह्मांड घाट है। धार्मिक मान्यता के अनुसार यहां श्री कृष्ण ने मिट्टी खाने के बहाने यशोदा को अपने मुख से समग्र ब्रह्मांड के दर्शन कराए थे। कहते हैं कि जो इस स्थान के दर्शन कर लेता है उसे मुक्ति मिल जाती है।

चौरासी खंभा का मुख्य मंदिर
मुगलकाल में सन् 1634 ई. में सम्राट शाहजहां ने इसी वन में चार शेरों का शिकार किया था। सन् 1018 ई. में महमूद गजनवी ने महावन पर आक्रमण कर चौरासी खंभा यानी नंद भवन को नष्ट-भ्रष्ट किया था। इसके बाद से यह अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त नहीं कर सका। चौरासी खंभा मंदिर से पूर्व दिशा में कुछ ही दूर यमुना जी के तट पर ब्रह्मांड घाट नाम का रमणीक स्थल है। यहां बहुत सुंदर पक्के घाट हैं। चारों ओर सुरम्य वृक्षावली, उद्यान एवं एक संस्कृत पाठशाला है। यहीं से कुछ दूर लता वल्लरियों के बीच मनोहारी चिंताहरण शिव के दर्शन हैं। गोपराज नंद बाबा के पिता पर्जन्य गोप पहले नंदगांव में ही रहते थे, वहीं रहते समय उनके उपानंद, अभिनंद, श्रीनंद, सुनंद और नंदन-ये पांच पुत्र तथा सनंदा और नंदिनी दो कन्याएं पैदा हुईं।

उन्होंने वहीं रह कर अपने सभी पुत्रों और कन्याओं का विवाह किया। मध्यम पुत्र श्रीनंद को कोई संतान न होने से बड़े चिंतित हुए। उन्होंने अपने पुत्र नंद को संतान की प्राप्ति के लिए ‘नारायण’ की उपासना की और उन्हें आकाशवाणी से यह ज्ञात हुआ कि श्रीनंद को असुरों का दलन करने वाला महापराक्रमी सर्वगुण संपन्न एक पुत्र शीघ्र ही पैदा होगा। इसके कुछ ही दिनों बाद केशी आदि असुरों का उत्पात आरंभ होने लगा। पर्जन्य गोप पूरे परिवार और सगे संबंधियों के साथ इस बृहदवन में उपस्थित हुए। 

यह वन नाना प्रकार के वृक्षों, लता-पताओं और पुष्पों से सुशोभित है, जहां गायों के चराने के लिए हरे-भरे चरागाह हैं। ऐसे एक स्थान को देखकर सभी गोप ब्रजवासी बड़े प्रसन्न हुए तथा यहीं बड़े सुखपूर्वक निवास करने लगे। यही नंद भवन में यशोदा मैया ने कृष्ण कन्हैया तथा योगमाया को यमज संतान के रूप में अद्र्धरात्रि को प्रसव किया। यहीं यशोदा के सूतिकागार में नाड़ीच्छेदन आदि जातकर्म रूप वैदिक संस्कार हुए?

यहीं पूतना, तृणावर्त, शकटासुर नामक असुरों का वध कर श्री कृष्ण ने उनका उद्धार किया। पास ही नंद की गोशाला में कृष्ण और बलदेव का नामकरण हुआ। यहीं पास में ही घुटनों पर राम, कृष्ण चले, यहीं पर मैया यशोदा ने चंचल बाल कृष्ण को ऊखल से बांधा, कृष्ण ने यमलार्जुन का उद्धार किया। यहीं अढ़ाई-तीन वर्ष की अवस्था तक श्री कृष्ण और राम की बालक्रीड़ाएं हुईं। बृहदवन या महावन गोकुल की लीलास्थलियों का ब्रह्मांड पुराण में भी वर्णन किया गया है।

वर्तमान दर्शनीय स्थल
श्री नंद मंदिर, यशोदा शयनस्थल, ऊखल स्थल, शकट भंजन स्थान, यमलार्जुन उद्धार स्थल, सप्त सामुद्रिक कूप, पास ही गोपीश्वर महादेव, योगमाया जन्मस्थल, बाल गोकुलेश्वर, रोहिणी मंदिर, पूतना वधस्थल दर्शनीय हैं।

भक्ति रत्नाकर ग्रंथ के अनुसार यहां के दर्शनीय स्थल हैं- जन्म स्थान, जन्म-संस्कार स्थान, गोशाला, नामकरण स्थान, पूतना वधस्थान, अग्निसंस्कार स्थल, शकट भंजन स्थल, स्तन्यपान स्थल, घुटनों पर चलने का स्थान, तृणावर्त वधस्थल, ब्रह्मांड घाट, यशोदा जी का आंगन, नवनीत चोरी स्थल, दामोदर लीला स्थल, यमलार्जुन-उद्धार-स्थल, गोपीश्वर महादेव, सप्त सामुद्रिक कूप, श्रीसनातन गोस्वामी की भजनस्थली, मदनमोहनजी का स्थान, रमणरेती, गोपकूप, उपानंद आदि गोपों के वासस्थान, श्रीकृष्ण के जातकर्म आदि का स्थान, गोप-बैठक, वृंदावन गमनपथ, सकरौली आदि स्थित है।

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Niyati Bhandari

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