Chandni Raat: चांदनी रात से जुड़े हैं कुछ राज

Friday, Apr 29, 2022 - 10:03 AM (IST)

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Chandni Raat: चांदनी प्रतीक है प्रकाश की, सौंदर्य की आभा-ओज एवं कांति की। सत्य मानो तो चांदनी का अलग ही महत्व है। कहते हैं कि चांदनी की आहट पाते ही कुमुदनी खिल उठती है। कृष्ण भी चांदनी रातों को गोपिकाओं संग रास रचाते हुए ‘मधुरिम-संगीत’ से सराबोर करते हैं। हजारों वर्षों से चांदनी के साथ हमारा अभिन्न संबंध रहा है।

चांदनी रात की बात ही तपते हृदय को शीतलता प्रदान करती है। ऐसी मान्यता है कि ‘शरद पूर्णिमा’ की रात को बिखरी हुई दूधिया चांदनी, सर्वाधिक शीतल, स्वास्थ्यवर्धक और आनंदप्रद होती है। शरद ऋतु की चांदनी को शरद पूर्णिमा की संज्ञा दी गई है।
महर्षि चरक के अनुसार रात्रि में चंद्रमा की शीतल चांदनी से शीतलता का प्रात: काल तथा अगस्तय-नक्षत्र के प्रभाव से पूरी तरह विष-मुक्त हुआ शरद ऋतु का स्वच्छ जल ‘हंसोदक’ के नाम से जाना जाता है। 

इसे स्नान करने, पीने आदि के लिए अमृत तुल्य कहा गया है। महाराज भर्तृहरि ने भोग सामग्री के साथ ‘चांदनी’ की गणना की है।  
भर्तृहरि लिखते हैं कि मनोहर गंध वाली पुष्प मालाएं, हवा, चंद्रमा की किरण, क्रीड़ा सरोवर, चंदन-धूलि, मंदिरा, मकल-नयनों वाली सुंदरियां, पारदर्शी महीन वस्त्र आदि भोग-सामग्रियां ‘पुण्यात्माओं’ को ही प्राप्ति होती है। 

‘आयुर्वेद-प्रकाश ग्रंथ में श्रेष्ठतम-नीलम’ की परीक्षा ‘शुभ चांदनी’ में करने की विधि बताई गई है। 

इसके अनुसार शरद पूर्णिमा की निर्मल धवल चांदनी में एक सुंदर वस्त्र पहनी हुई गौर वर्ण वाली युवती के हाथ में दूध से भरा हुआ एक बर्तन रखकर चंद्रमा के सामने खड़ा करते हैं। एक पुरुष नीलम को हाथ में रखकर, चांदनी के माध्यम से नीलम को प्रकाश उक्त दूध में डालता है।

वह नीलम अगर अपने प्रकाश से दूध एवं युवती के शरीर पर नीलाभ-आभा उत्पन्न करता है, तो उसे श्रेष्ठ नीलम कहा जा सकता है।  
महर्षि वार भट्ट लिखते हैं कि अंधेरा, कसैला और तीखा होता है, जबकि चांदनी मधुर व शीतल होती है। आयुर्वेदाचार्य भाव मिश्र लिखते हैं कि चांदनी सुख प्रदान करने वाली है, प्यास और पित्त को दूर कर देने वाली होती है।  

वह कहते हैं कि प्रदोष काल में अपने महल की छत पर ‘शारदीय चांदनी’ का आनंद अवश्य लेना चाहिए। भारतीय संस्कृति में रात के समय पेड़-पौधों को स्पर्श करना मना किया गया है। शरद पूनम की रात को खीर बनाकर ‘चांदनी’ में रख देने की परम्परा आज भी विद्यमान है। ऐसी मान्यता है कि ‘चांदनी’ से उस खीर में अमृत जैसे गुण आ जाते हैं। चांदनी को नेत्रों के लिए लाभदायक माना गया है। अत: शरद पूर्णिमा की शीतल चांदनी में बैठकर सुई-धागा पिरनो का उपक्रम किया जाता है। नेत्र-ज्योति बढ़ाने के लिए इस प्रयोग को अत्यंत श्रेष्ठ माना जाता है। 

नेत्र-ज्योति बढ़ाने के लिए कुछ लोग इस रात की चांदनी में विशिष्ट अनुपात में गाय का घी, काली मिर्च व शक्कर मिलाकर रखते हैं, जिसका थोड़ी-थोड़ी मात्रा में आगामी 15 दिनों तक सेवन करते हैं। वैसे भी चंद्रमा के पृथ्वी से निकट होने से शास्त्रियों का ऐसा विश्वास है कि चंद्र कलाओं के घटने-बढ़ने से जिस प्रकार तिथियां बदलती हैं, उसी प्रकार चांदनी भी घटती-बढ़ती रहती है।

Niyati Bhandari

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