Chanakya Niti: जीवन में सुख चाहते हैं तो जानें क्या आप में है ये काबिलियत

Saturday, May 23, 2020 - 03:40 PM (IST)

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हमारी वेबसाइट को निरंतर पड़ने वाले लोग अब तक आचार्य चाणक्य से काफी हद तक अगवत हो चुके हैं। और हम जानते हैं आप इंतज़ार करते हैं कि हम आपको आए दिन अपनी वेबसाइट के माध्यम से इनकी द्वारा गई बातें आप तक पहुंचाए। जिससे न केवल आपका ज्ञाम बढ़े बल्कि साथ ही साथ इनकी नीतियों की मदद से आप अपने जीवन को न सिर्फ सरल और बेहतर बनाए, साथ ही साथ हर तरह की परेशानी आदि से निजात पा सके। तो चलिए आपकी बेसब्री को खत्म करते हैं और आज आपको महान कूटनीतिज्ञ की उस नीति के बारे में बताते हैं जिसमें उन्होंने उन 5 चीज़ो के बारे में बताया है जो कभी सुख नहीं देती बल्कि इंसान को दुख की तरफ़ धकेलती है। जी हां, अपने नीति सूत्र में इन्होंने उस नीति का जिक्र किया जिसके श्लोक में विस्तारपूर्वक इन चीज़ों के बारे में बताय है कि आखिर वो 5 चीज़ों है कौन सी-

सबसे पहले जानें चाणक्य नीति में वर्णित ये श्लोक-
अनवस्थितकायस्य न जने न वने सुखम्।
जनो दहति संसर्गाद् वनं संगविवर्जनात।।

उपरोक्त श्लोक के द्वारा आचार्य चाणक्य बताना चाहते हैं कि जो व्यक्ति अपने जीवन में सुख की कामना रखता है उसके लिए अपने मन पर काबू पाना अधिक आवश्यक होता है, चाणक्य कहते हैं कि जिस व्यक्ति का मन शांत होता उसके जीवन में सुख की कभी कोई कमी नहीं होती। क्योंकि जिन लोगों का मन मस्तिष्क शांत नहीं होता, उन्हें जीवन काल में सरलता से सुख प्राप्त नहीं होता।

इस पर चाणक्य का मानना है कि दुख केवल उन लोगों को मिलता है जिनका मन अधिक चंचल होता है, यही कारण है कि उन्हें जल्दी किसी चीज़ में खुशी दिखाई नहीं देती। आगे चाणक्य कहते हैं कि असल में केवल संतोषी व्यक्ति ही सुख की अनुभूति कर पाता है, जिसके मन में हमेशा से असंतोष की भावना रहती है, वो हर स्थिति में फिर चाहे कभी-कभी स्थिति उनके हक में ही क्यों न हो, वो दुखी ही रहते हैं।

तो वहीं इसके विपरीत, जिन लोगों को थोड़ी चीज़ों में भी संतुष्टि का भाव आए उनके लिए सुख की प्राप्ति करना बहुत आसान हो जाता है। इसका अर्थात जिस व्यक्ति में संतोष की कमी होती है उसे कभी जीवन में सुख की प्राप्ति नहीं होती, फिर चाहे वो इंसान कितनी भी कोशिश करें। तो अगर आप सुखी जीवन की कामना रखते हैं तो सबसे पहले अपने अंदर संतुष्ट को तलाशें। इसके अलावा कभी किसी ऐसे व्यक्ति के संपर्क में आने से बचे जो असंतुष्ट रहते हैं क्योंकि ऐसे लोगों का प्रभाव पड़ने से संतुष्ट रहने वाले लोग भी असंतुष्ट होने लगे रहते हैं।

चाणक्य अपने इस श्लोक में उन लोगों को भी जिक्र करते हैं जो दूसरों की खुशी से ईर्ष्या रखते हैं यानि किसी की फलते-फूलते देखकर जल-भुन जाते हैं। जलन की भावना हर खुशी को नज़रअंदाज़ करने में सक्षम है। उनके अनुसार दूसरों की खुशियों को देखकर जलने वाले लोग न केवल दुखी रहते हैं बल्कि वो अकेलेपन का भी शिकार हो जाते हैं। समाज में रहने के बाद उनके सामाजिक रिश्ते मजबूत नहीं हो पाते हैं।

Jyoti

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