चाणक्य नीति: आसमान के बादलों से सीखें पैसों का लेन-देन, कभी नहीं डूबेगा आपका धन

Monday, Dec 09, 2019 - 04:17 PM (IST)

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आचार्य चाणक्य की नीतियों से आज भी लोग बहुत कुछ सीख सकते हैं। मगर भागदौड़ भरी लाइफ में समय की कमी होने के कारण इन नीतियों पर कोई अमल नहीं कर पाता। तो वहीं कुछ के पास इसके बारे में जानने का समय ही नहीं होता। मगर आपको बता दें अगर इन नीतियों पर अमल कर लिया जाए तो इंसान का जीवन बहुत हद तक बेहतर हो सकता है। क्योंकि इन्होंने अपने नीति शास्त्र में जीवन के हर पहलु से जुड़ी बात बताई हैं। जिसमें से आज हम आपको बताने वाले हैं चाणक्य नीति के आठवें अध्याय में वर्णित पांचवें श्लोक के बारे में जिसमें इन्होंने बताया है कि इंसान को अपना जीवन किस प्रकार व्यतीत करना चाहिए।

श्लोक-
वित्तं देहि गुणान्वितेषु मतिमन्नान्यत्र देहि क्वचित्, प्राप्तं वारिनिधेर्जलं घनमुखे माधुर्ययुक्तं सदा।
जीवान्स्थावरजङ्गमांश्च सकलान्संजीव्य भूमण्डलं, भूयः पश्य तदेव कोटिगुणितं गच्छन्तमम्भोनिधिम्।।

अर्थात- इस श्लोक के माध्यम से चाणक्य समझाना चाहते हैं कि धन से मदद किसे करनी चाहिए। चाणक्य का मानना है कि वास्तव में बुद्धिमान इंसान वही है जो एक गुणवान और योग्य व्यक्ति को पैसा देता है। जो गुणवान नहीं है, उसे धन या पैसा उधार देने से बचना चाहिए। क्योंकि गुणहीन व्यक्ति को दिया हुआ धन या पैसा नष्ट हो जाता है। इस पर उदाहरण देते हुए चाणक्य कहते हैं जिस प्रकार बादल समुद्र से जल लेकर शीतल और पेय जल की वर्षा करता है। जिसके प्रभाव से सभी प्राणी जीवित रहते हैं और यही जल फिर में कई गुना अधिक होकर समुद्र में चला जाता है।

इस बात पर दृष्टि डालते हुए चाणक्य कहते हैं कि धनी और बुद्धिमान लोगों को भी धन देते समय किसी योग्य और समझदार व्यक्ति का ही चयन करना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि योग्य व्यक्ति उस पैसे का सदुपयोग इंसान के भले के लिए करेगा। इसके अलावा वो कहते हैं समझदार इंसान को दिया हुआ पैसा अच्छे कार्य में लगता है।

Jyoti

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