चाणक्य नीति- दूसरों के लिए प्रेरणास्पद बनें

Friday, Aug 12, 2022 - 11:03 AM (IST)

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चंद्रगुप्त के महामंत्री आचार्य चाणक्य अत्यंत सादगी का जीवन जीया करते थे। एक बार गंगा में भयंकर बाढ़ आ जाने से हजारों लोग बेघर हो गए। अत: बाढग़्रस्त प्रजा के लिए राज्य भर से कम्बल इकट्ठे किए गए। महामात्य चाणक्य, गंगा नदी के किनारे कुछ ऊंचाई पर एक झोंपड़ी में रहते थे। झोंपड़ी में जीवनोपयोगी अत्यंत अल्प साधन ही रखते थे। चाणक्य के पास दो फटे-पुराने कम्बल थे। प्रजा के लिए जो कम्बल इकट्ठे किए गए थे, वे प्रधान अमात्य की झोंपड़ी के बाहर रखे हुए थे। कुछ चोरों को पता लगा कि महामात्य चाणक्य की झोंपड़ी के बाहर सैंकड़ों कम्बल पड़े हुए हैं, तो उन्होंने उन कम्बलों को चुराना चाहा।

चोर वहां गए और कम्बलों के गठ्ठड़ बांध लिए। गठ्ठड़ बांधकर चलने को तैयार हुए कि उन्होंने देखा, झोंपड़ी में महामात्या सोए हुए हैं। ओढऩे, बिछाने के लिए जो कम्बल है, वह फटा और पुराना है। चोर यह देखकर ङ्क्षचतन करने लगे कि भारत वर्ष के गौरवमय मद पर आसीन व्यक्ति ने फटा-पुराना कम्बल ओढ़-बिछा रखा है और हम ऐसे दुष्ट हैं, जो बाढ़ पीड़ितों के लिए एकत्रित कम्बलों को भी चुरा रहे हैं।
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वे पश्चाताप से भरे, चाणक्य के चरणों में गिर पड़े। चाणक्य उठकर बैठ गए। तस्करों ने कहा-कम्बलों का इतना ढेर लगा है, फिर आप इतने फटे-पुराने कम्बल का उपयोग क्यों कर रहे हो? चाणक्य ने कहा-ये कम्बल बाढ़ पीड़ितों के लिए हैं। उनकी निधि है। उस निधि का उपयोग हम नहीं कर सकते। चाणक्य का ऐसा प्रेरणास्पद व्यवहार देख कर तस्करों का जीवन भी बदल गया। —आचार्य ज्ञानचंद्र


 

Jyoti

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