संतान को योग्य बनाने के लिए क्या करें जानें आचार्य चाणक्य से

Tuesday, Mar 08, 2022 - 04:55 PM (IST)

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हर माता-पिता की ये कामना होती है कि उनकी संतान उनकी आज्ञाकारी हो व संस्कारी आदि हो। परंतु आज कल लोग इसके लिए कुछ करते नहीं है। कहने का भाव माता पिता अपनी भागदौड़ भरी जिंदगी में अपनी संतान के पालन-पोषण व देख-रेख में खास ध्यान नहीं दे पाते। ऐसे में हम आपके लिए लाए हैं आचार्य चाणक्य के नीति सूत्र के कुछ  श्लोक जिसमें संतान को योग्य बनाने के बारे में बताया है। तो आइए बिल्कुल भी देर न करते हुए जानते हैं चाणक्य नीति सूत्र में बताए गए श्लोक तथा इसके अर्थ- 

चाणक्य नीति श्लोक- 
लालयेत्पञ्चवर्षाणि दश वर्षाणि ताडयेत् ।
प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत् ।।
इस श्लोक में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि प्रत्येक माता पिता को अपने पांच वर्ष तक को अपने पुत्र को लाड-प्यार से पालना चाहिए। जब पुत्र 10 वर्ष का हो जाए तो उसे छड़ी की मार से डराना चाहिए, परंतु जब पुत्र 16 वर्ष की आयु में कदम रख दें तो माता-पिता को उसका मित्र बन जाना चाहिए। चाणक्य कहते हैं कि इस तरह बच्चों को पालन पोषण करने से संतान योग्य और अनुशासित बनती है। चाणक्य द्वारा इस श्लोक में दी गई जानकारी संतान के भविष्य को बनाने और संवारने का संदेश देती है। 

चाणक्य नीति श्लोक- 
किं जातैर्बहुभिः पुत्रैः शोकसन्तापकारकैः ।
वरमेकः कुलालम्बी यत्र विश्राम्यते कुलम् ।।
उपरोक्त श्लोक में चाणक्य कहते हैं कि ऐसे अनेक पुत्र किसी काम के नहीं जो जीवन में दुख और निराशा पैदा करें। इससे तो केवल एक ही पुत्र अच्छा है, जो संपूर्ण घर को सहारा और शांति प्रदान करें। 

चाणक्य नीति श्लोक- 
मूर्खा यत्र न पुज्यन्ते धान्यं यत्र सुसञ्चितम् ।
दाम्पत्ये कलहो नास्ति तत्र श्रीः स्वयमागता ।।
ऊपर दिए इस श्लोक में चाणक्य कहते हैं जिस स्थान पर मूर्खों पर सम्मान होता है वहां कभी देवी लक्ष्मी निवास नहीं करती है। वह हमेशा ऐसे घर में निवास करती हैं, जहां पर विद्वान सम्मान पाते हैं, जहां अच्छे ढंग से भंडार किया जाता है, पति-पत्नी आपस में प्रेम से रहते हैं, उनमें किसी प्रकार का कोई वाद-विवाद नहीं होता। 
 

Jyoti

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