चाणक्य नीति: गुरु से भी ऊपर होता है गुरु की माता का स्थान

Wednesday, Sep 01, 2021 - 12:03 PM (IST)

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आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में मानव जीवन से जुड़े लगभग हर पहलू के बारे में वर्णन किया है। कहा जाता  है जो व्यक्ति अपने जीवन में इनकी नीतियों को अपनाता मानता है, उसे सफलता को मिलती ही है साथ ही साथ घर में सुख-समृद्धि बढ़ती है। तथा जीवन सरल हो जाता है। तो आइए जानते हैं चाणक्य नीति के ऐसे श्लोकों के बारें में जिनमें आचार्य चाणक्य ने गुरु की माता का क्या स्थान होता है, माता की सेवा करना तथा विद्या किसी भी व्यक्ति के जीवन में क्या मायने रखती है, इस बारे में जानकारी दी है। 

चाणक्य नीति श्लोक- सर्वावस्थासु माता भर्तव्या
भाव- माता की सेवा परम धर्म 
अर्थात- प्रत्येक अवस्था में सर्वप्रथम माता का भरण-पोषण करना चाहिए।माता जन्म देने वाली होती है। वह अपनी संतान का पालन-पोषण अपने दूध से करती है। दूध का ऋण उतारना असंभव है। अत: माता की सेवा करना परम धर्म होना चाहिए।

चाणक्य नीति सूत्र श्लोक- गुरूणां माता गरीयसी
भाव- गुरु की माता सर्वोच्च
अर्थात- माता का स्थान समाज में सबसे ऊंचा होता है परन्तु गुरु की माता का स्थान हमेशा से ही सर्वोच्च माना गया है।  

चाणक्य नीति सूत्र श्लोक- वैदुष्यमलंकारेणाच्छाद्यते।
भाव ‘विद्या’ ही सच्चा आभूषण
अर्थात- सौंदर्य अलंकारों अर्थात आभूषणों से छिप जाता है। इसका अर्थ है कि विद्या ही मनुष्य का सच्चा आभूषण है। उसी से उसका सौंदर्य है। कृत्रिम आभूषणों को धारण करके एक विद्वान अपनी बुद्धिमत्ता को छिपा डालता है।

चाणक्य नीति सूत्र श्लोक- दुष्कलत्रं मनस्विनां शरीरकर्शनम्
भाव- कलह नहीं उचित 
अर्थात- यदि परिवार में पत्नी कलह करने वाली हो तो चिंतनशील व्यक्ति उसकी रोज की कलह से व्यथित होकर निर्बल हो जाता है। ऐसे में जरूरी है कि परिवार में कलह से बचा जाए।
 

Jyoti

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