चाणक्य नीति श्लोक से जानिए क्या है संतोष का महत्व

punjabkesari.in Sunday, Jun 06, 2021 - 06:42 PM (IST)

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आचार्य चाणक्य के नीति शास्त्र में मनुष्य के जीवन से जुड़ी हर बात का वर्णन मिलता है। हमेशा की तरह आज भी हम आपको इनके द्वारा बताए गए नीति श्लोक बताने जा रहे हैं। जिसमें चाणक्य ने भूख, भूखे व्यक्ति से तथा संतोष के बारे में बताया है कि इन तीनों की मानव जीवन में क्या अहमियत है। आगे जानें चाणक्य नीति श्लोक भावार्थ व अर्थात ते साथ- 

चाणक्य नीति श्लोक-
न क्षुधासम :शत्रु:।
भावार्थ- भूख के समान कोई शत्रु नहीं

अर्थात- इस संसार में मनुष्य कोई भी कार्य अपनी क्षुधा शांत करने के लिए ही करता है। क्षुधा (भूख) मनुष्य को कभी-कभी निकृष्टतम कार्य, जैसे चोरी और दुराचरण तक करने के लिए उकसा देती है इसलिए आचार्य चाणक्य ने भूख को सबसे बड़ा शत्रु कहा है।

चाणक्य नीति श्लोक-
अकृतेर्नियता क्षुत्।
भावार्थ- आलसी भूखा ही रहता है

जो व्यक्ति कर्म करके अपनी भूख को शांत करने का प्रयत्न नहीं करता, वह आलसी और कामचोर होता है। जो काम नहीं करता, अपनी रोजी-रोटी का जुगाड़  नहीं करता, वह भूखा ही रहता है और कष्ट  उठाता है। अत: राजा को चाहिए कि वह अपनी प्रजा में अकर्मण्यता के भाव को न फैलने दे। उन्हें सतत प्रयत्नशील रखें।  

चाणक्य नीति श्लोक-
श्व: सहस्रादद्येकाकिनी श्रेयसी।
भावार्थ- संतोष का महत्व

हमारे पास जो वर्तमान में है, हमें उसी से संतोष करना चाहिए। आकाश के बादलों को देखकर अपना घड़ा नहीं फोड़ देना चाहिए। अर्थात अधिक जल प्राप्त होने की आशा में घड़े में रखा जल ही फैंक देना बुद्धिमानी नहीं है।


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Content Writer

Jyoti

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