चाणक्य नीति सूत्र: जब स्वामी हों क्रोधित तो...

punjabkesari.in Tuesday, May 04, 2021 - 12:53 PM (IST)

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धार्मिक ग्रंथों मे कहा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को क्रोध के समय अपने आप निरंतर रखना चाहिए। क्योंकि क्रोध एक ऐसी चीज़ है जो अगर हद से ज्यादा बढ़ जाता है कभी-कभी जिंदगी तक बर्बाद कर देता है। इसका कारण ये है कि क्रोध के वश में आने के बाद बड़े से बड़ा इंसान सही गलत की पहचान भूल जाता है। इसलिए अक्सर हिदायत दी जाती है कि क्रोध के समय व्यक्ति को अपने आप पर काबू रखना चाहिए। इसके अलावा क्या करना चाहिए, क्या नहीं, आइए जानते हैं आचार्य चाणक्य से-

चाणक्य नीति श्लोक- 
स्वामिनि कुपिते स्वामिनमेवानुवर्तेत।
भावार्थ- जब स्वामी हों क्रोधित
स्वामिनि कुपिते स्वामिनमेवानुवर्तेत।
अर्थात- राजा का अपने सेवकों पर क्रोध करना अनुचित और हानि पहुंचाने वाला होता है लेकिन जब कभी स्वामी अथवा राजा क्रोधित हो तो सेवक को नतमस्तक होकर उसकी बात स्वीकार कर लेनी चाहिए।अपने चाणक्य नीति के वर्णित एक अन्य श्लोक में चाणक्य ने ममता का सही अर्थ बताना चाहा है। इस श्लोक में उन्होंने ये बताया कि मां ममता बड़ी प्रबल होती है, जिसे मां के बच्चे भी बहुत अच्छे से समझते हैं।

चाणक्य नीति श्लोक- 
मातृताडितो वत्सो मातरमेवानुरोदिति।
भावार्थ- ममता बड़ी प्रबल
अर्थात- मां की ममता बड़ी प्रबल होती है। बालक इसे अच्छी तरह समझता है इसलिए जब वह उसे किसी बात पर पीट देती है तो वह अपनी मां के पास ही जाकर रोता है। आचार्य चाणक्य के इस सूत्र का भाव यही है कि अपने हितैषी के कुपित होने पर उसका त्याग नहीं करना चाहिए।


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Content Writer

Jyoti

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